"दोस्ती" दुनिया में सबसे कठिन बात है समझने के लिए..ऐसा कुछ आपको स्कूल में नही सिखाया जाता . लेकिन अगर आपने दोस्ती का अर्थ नहीं सीखा है, तो आपने वास्तव में कुछ भी नहीं सीखा है"- मोहम्मद अली
इस पूरी दुनिया में 7-अरब से ज्यादा लोग हैं,लगभग 6,900 से ज्यादा भाषाएं बोली जाती हैं कई देश कई प्रदेश और कई धर्मो में विभाजित हैं प्रथ्वी का ये धरातल लेकिन फिर भी कुछ अनोखा है जो हम जानते है भले ही कितने लोग , कितनी भाषाएं और भले ही कितनी सीमाएं बांध दी जाएं लेकिन दोस्ती इन सबसे परे हैं।
शायद द ग्रेट फाइटर मोहम्मद अली दोस्ती के इसी अर्थ की बात कर रहे हो। वैसे चेतन भगत ने अपनी नॉवेल "द 3 मिस्टेक्स ऑफ़ माय लाइफ " पर बेस्ड फिल्म "काई पो च़े "में दोस्ती की इस कड़ी को थोड़ा पीछे के वर्षो से आगे ले गये हैं। इस स्टोरी के कई पहलुओ को दोस्ती के जरिये हम तक पहुचांया गया। लेकिन यकीन मानिये मैं इसमें केवल दोस्ती देखने गया था और मुझे काफी बेहतर ढंग से दिखी भी।
अब मैं कोई समीक्षक नही जो फिल्म के हर पहलु पर बात करू। आज हम मिलकर केवल दोस्ती की बात करेंगे। वो दोस्ती जिसके बारे में एक पुरानी लाइन हैं कि ये एक ऐसा रिश्ता है जो हम यह आकर बनाते है और ये सच भी हैं । अभी कुछ ही दिन गुजरे है जब एक ऐड की ये लाइन काफी फेमस हुई कि " हर एक फ्रेंड जरुरी होता हैं" और ये बात हर दोस्त की जुबान पर चढ़ गई और फेब के प्यार भरे दिनों को कैसे भूल सकते है आप .. अरे अपना वैलेंटाइन वीक जो हाल ही के कुछ सालो में अपना हुआ हैं।अब चाहे किसी की कोई गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड हो या न हो हम तो आपस में ही सलिब्रेट कर लेते है और प्रपोस डे से ब्रेक उप डे तक एक दूसरे के इनबॉक्स को विशेस से भर देते हैं। दोस्ती किसी भी धर्म के दाएरे में नही आती अब चाहे ईद हो या दिवाली हम दोस्त अपने तरीके से हर त्यौहार मानते है अब चाहे धर्म कोई हो ..दोस्ती का अपना एक नया धर्म नजर आता हैं। भले ही अमित आज तक मस्जिद न गया हो पर वो मिन्हाज़ के लिए मस्जिद का सजदा जरुर करेगा। गुरुनानक जयंती हो और सबरजीत के दोस्त जॉन भक्तो की सेवा न करे ऐसा कभी नही होता.. बस दोस्ती के धर्म पर कोई आंच न आये भले ही अपने धर्म के थोड़े बहुत नियम टूट जाये चलता है बस दोस्त की मुस्कराहट बनी रहे। अब चाहे खेल जो हो दोस्तों के बीच हर खेल का अलग मजा होता हैं अब चाहे वो खेल किसी दोस्त पर नहाते वक़्त ठंडा पानी डालना क्यों न हो या उसे सुबह-सुबह नींद से जगाने के लिया उस पर कॉक्रोच डालना हो अब ये खेल हैं क्या किया जा सकता अब बाद में तो वो कुछ न कुछ हाथ में लेकर दौड़ाएगा अब इसका मजा भी कुछ और ही होगा ..इसी बात पर प्रसिद्ध अमेरिकन वक्ता और कवि -राल्फ वाल्डो इमर्सन ने कहा हैं कि- यह पुराने दोस्तों के आशीर्वाद में से एक है कि आप उनके साथ बेवकूफ होना बर्दाश्त कर सकते हैं।
बहुत कुछ गलत होते हुए भी दोस्ती की इस उम्र में सब सही होता हैं और काफी बार गलत होकर ये दोस्ती बहुत कुछ सही भी कर देती है। दोस्तो की अपनी झिलमिलाती दुनिया होती है और खुशनुमा माहोल होता हैं। एक ऐसा माहोल जिसमे वो दोस्त की दोस्ती में बेसुध हो जाता हैं,अब ये एक ऐसी स्थिती हैं जहाँ सही और गलत के बीच का दाएरा इतना होता हैं कि अपने नज़दीकी रिश्तो में दरार पड़ जाती हैं और शायद इसलिए भगवान बुद्धा ऐसा कहा कि- एक निष्ठाहीन और बुरे दोस्त का डर एक जंगली जानवर के डर से अधिक होना चाहिए क्यूंकि एक जंगली जानवर अपके शरीर को घाव दे सकता है, लेकिन एक बुरा दोस्त अपने दिमाग को घाव दे जाएगा"..अब ये सिक्के का दूसरा और अहम् पहलु हैं यहाँ दोस्ती एक ऐसे मुकाम पर पहुंचती हैं जहाँ से आपका चाह कर भी वापस आना थोड़ा मुश्किल होता हैं ..और यहाँ रिश्तों का मांझा ऐसा उलझ जाता हैं जहाँ दोस्ती की पतंग तो उड़ती हैं..पर रिश्तो की पतंग की डोर ढीली पड़ने लगती है। आपको ऐसा नही लगता कि हमारी जिंदगी में सबकी अपनी एक जगह होती हैं जिन्होंने जन्म दिया ,जिन्होंने हमे शिक्षा दी,जिनके साथ हम पले-बड़े और जिनके साथ हमने दोस्ती की .. ये सब एक पज्ज़ल गेम की तरह हमें हमारी जिंदगी में मिले पर पते की बात ये है की जब हम इस दुनिया में आये तो कुछ बहुत जरुरी लोगो की जगह स्थायी थी यानि हमारा परिवार तो अब चुनाव करना था हमें कुछ लोगो और दोस्तों का..और जब बात चुनाव की आती हैं तो हम बेहतर तलाशते हैं ताकि हमारे व्यक्तित्व का और जिंदगी का पज्ज़ल ख़ूबसूरत बन सके और जब विद्वान अरस्तु ने कहा है कि - "दोस्ती".. दो शरीरो में एक आत्मा का निवास है",तो उनका कहना सार्थक किया जाये। अब मिलकर एक वादा हो जाये - दोस्ती भले ही एक धर्म का रूप ले रही हो पर हमे अपने रिश्तो के धर्म को नही भूलना चाहिए। इसी उम्मीद के साथ ..सुलझा लेंगे उलझे रिश्तो का मांझा ..हां मांझा .
बहुत कुछ गलत होते हुए भी दोस्ती की इस उम्र में सब सही होता हैं और काफी बार गलत होकर ये दोस्ती बहुत कुछ सही भी कर देती है। दोस्तो की अपनी झिलमिलाती दुनिया होती है और खुशनुमा माहोल होता हैं। एक ऐसा माहोल जिसमे वो दोस्त की दोस्ती में बेसुध हो जाता हैं,अब ये एक ऐसी स्थिती हैं जहाँ सही और गलत के बीच का दाएरा इतना होता हैं कि अपने नज़दीकी रिश्तो में दरार पड़ जाती हैं और शायद इसलिए भगवान बुद्धा ऐसा कहा कि- एक निष्ठाहीन और बुरे दोस्त का डर एक जंगली जानवर के डर से अधिक होना चाहिए क्यूंकि एक जंगली जानवर अपके शरीर को घाव दे सकता है, लेकिन एक बुरा दोस्त अपने दिमाग को घाव दे जाएगा"..अब ये सिक्के का दूसरा और अहम् पहलु हैं यहाँ दोस्ती एक ऐसे मुकाम पर पहुंचती हैं जहाँ से आपका चाह कर भी वापस आना थोड़ा मुश्किल होता हैं ..और यहाँ रिश्तों का मांझा ऐसा उलझ जाता हैं जहाँ दोस्ती की पतंग तो उड़ती हैं..पर रिश्तो की पतंग की डोर ढीली पड़ने लगती है। आपको ऐसा नही लगता कि हमारी जिंदगी में सबकी अपनी एक जगह होती हैं जिन्होंने जन्म दिया ,जिन्होंने हमे शिक्षा दी,जिनके साथ हम पले-बड़े और जिनके साथ हमने दोस्ती की .. ये सब एक पज्ज़ल गेम की तरह हमें हमारी जिंदगी में मिले पर पते की बात ये है की जब हम इस दुनिया में आये तो कुछ बहुत जरुरी लोगो की जगह स्थायी थी यानि हमारा परिवार तो अब चुनाव करना था हमें कुछ लोगो और दोस्तों का..और जब बात चुनाव की आती हैं तो हम बेहतर तलाशते हैं ताकि हमारे व्यक्तित्व का और जिंदगी का पज्ज़ल ख़ूबसूरत बन सके और जब विद्वान अरस्तु ने कहा है कि - "दोस्ती".. दो शरीरो में एक आत्मा का निवास है",तो उनका कहना सार्थक किया जाये। अब मिलकर एक वादा हो जाये - दोस्ती भले ही एक धर्म का रूप ले रही हो पर हमे अपने रिश्तो के धर्म को नही भूलना चाहिए। इसी उम्मीद के साथ ..सुलझा लेंगे उलझे रिश्तो का मांझा ..हां मांझा .
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