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| Dedicate to my Sweet Sister........... |
जब राह ने राहगीर से कहा ...
चल कर मुझ पर तूने एहसान किया ,
वरना केवल चिलचिलाती धूप और ..
धधकती हवांए चिढ़ाती हैं मुझे।
और पाकर अकेला .. रात का अँधेरा,
और अकेला सा कर देता मुझे।
राहगीर -
कि , तू ऐसा कहकर बड़प्पन दिखाती है ..
मैं एहसानमंद हूँ तेरा कि ...
तुझ पर चल कर मंजिल दिख तो जाती है।
अरे ...मंजिल मिले ना मिले कम से कम ..
तू हर वक़्त साथ तो नजर आती हैं।
और वैसे भी , हर मोड़ पर साथ छोड़ा अपनों ने .....
तू कम से कम मंजिल तक साथ तो जाती हैं।
और बात कही रात के अंधेरे की ..तो ,
अंधेरो का काला साया तो मुझ पर भी छाता हैं,
तब नज़रे ढूंढ़ती ... हैं चाँद की रौशनी को ,
कि ,..उम्मीद की किरण सफ़ेद ही सही ..
पर मीलो दूर जलता हुआ ..एक चाँद सा दिया नजर तो आता हैं।
और वक़्त हो कैसा भी,
.... और फ़ासला हो जितना लम्बा, तेरे साथ चलते हुए हर फ़साना गुजर जाता हैं।
written by - ritesh nischal

Paaaaa aapne to ise or behtareen kar diya kuchh or add up kar ke m happy.
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