DIFFERENCE |
नज़दीक से हर रंग बहुत,
सुर्ख़ नज़र आता है।
फिर क्यों बढ़ती दूरी से,
उसमें फ़र्क नज़र आता है।।
सुर्ख़ नज़र आता है।
फिर क्यों बढ़ती दूरी से,
उसमें फ़र्क नज़र आता है।।
नज़दीक कई चेहरों में हम,
कोई एक चेहरा ढूढ़ते हैं।
फिर भी हम उन मिलते बिछुड़ते,
चेहरों में फ़र्क ढूढ़ते हैं।
कोई एक चेहरा ढूढ़ते हैं।
फिर भी हम उन मिलते बिछुड़ते,
चेहरों में फ़र्क ढूढ़ते हैं।
हर बार हम चाहत से ज्यादा,
चाह क्यों लेते हैं।
कमबख्त मिल भी जाए तो उसमें भी
हम फ़र्क बना क्यों लेते हैं।
चाह क्यों लेते हैं।
कमबख्त मिल भी जाए तो उसमें भी
हम फ़र्क बना क्यों लेते हैं।
ये फ़र्क ही तो है, जो शख्स से,
उसकी शख्सियत छीन लेती है।
किसी नज़र वाले शख्स की,
नज़रिए में ढील देती है।
उसकी शख्सियत छीन लेती है।
किसी नज़र वाले शख्स की,
नज़रिए में ढील देती है।
फ़र्क जरूरी भी है,
आज के ज़माने में
आज के ज़माने में
क्योंकि, इन्सान कई बार चूकता है,
खुद को आज़माने में।
खुद को आज़माने में।
इसलिए, फ़र्क जरूरी है, दूसरों से खुद को,
बेहतर बनाने में।
खुद को बदले हर लम्हें में,
इस तर्क को जिस्म से रूह तक महसूस करे ।
दोस्त बदलते ज़माने के साथ,
हर लम्हा खुद में फ़र्क महसूस करे ।
इस तर्क को जिस्म से रूह तक महसूस करे ।
दोस्त बदलते ज़माने के साथ,
हर लम्हा खुद में फ़र्क महसूस करे ।
अपने जेहन में अपनी सीरत का,
अर्क शामिल करे ।
हो गर बनना बेहतर दूसरों से,
तो आइए खुद में फ़र्क शामिल करे ।।
अर्क शामिल करे ।
हो गर बनना बेहतर दूसरों से,
तो आइए खुद में फ़र्क शामिल करे ।।
Written Date: - March 09 Written By- RitesH NischaL
nice Poem Bro
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