Nishabd....??? |
जब भी मैं निःशब्द हूं होता।
भावहीन जब ह्रदय है होता,
सागर में खोते से विचार,
और
संदिग्ध हर विषय है होता।।
जब भी मैं निःशब्द हूं होता।।
मस्ष्तिक पर विजय हो कैसे,
और प्राप्त लक्ष्य हो जैसे तैसे।
मन बस विचारों को गति देता,
जब भी मैं निःशब्द हूं होता।
हर क्रियाकलाप एक हलचल मात्र,
मैं नदी सा विचलित पात्र।
हो दिशाहीन बस कलकल बहता,
जब भी मैं निःशब्द हूं होता।।
कभी मैं पुष्प भांति खिला तो सही,
महककर महकाने की इच्छा बस रही।
मुरझाकर यथावत महकता मैं रहता,
जब भी मैं निःशब्द हूं होता।
निःशब्दता असहाय का प्रमाण नहीं,
प्रयास है मौन से विजय सही।
इस तरह सर्तक साधक सा लक्ष्य में खोता।
जब भी मैं निःशब्द हूं होता।।
एक कवि का चल अचल मन,
मैं अक्षर सा निश्चल बन।
शब्दों को अंधेरे में टोता,
जब भी मैं निःशब्द हूं होता।
सरस्वती चरणों का सेवक,
आर्शीवाद मिले मनमोहक।
सुनता इनकी स्तुति मैं बनकर श्रोता।......
जब भी मैं निःशब्द हूं होता।।
Written Date: - March.2010 W..By- Ritesh Nischal
No comments:
Post a Comment