एक बड़ी बहस का विषय बन चुका एक निर्णय जिसको कहने .सुनने में हममे से बहुतो को ऐतराज हैं। लेकिन ये एक बहुत बड़ा इत्तेफ़ाक है कि जब पिछले महीने 14.फरवरी दिन गुरुवार को पूरी दुनिया वैलेंटाइन डे मना रही थी और हमारा देश भी इस प्यार के ख़ुशनुमा माहोल में सराबोर हो रहा था। तो ठीक एक महीने बाद टीनेजर के लिए केंद्रीय कैबिनेट ने 14.मार्च दिन गुरुवार को मतलब उसी दिन और उसी तारिख़ में एक तोहफा दिया
अब ये किसी की मानसिकता में तोहफा है और किसी की सोच में . पनपते युवाओ के मस्तिष्क में दोजख़ के बीज का काम करेगा। वैसे हम अपने बड़ो की बात करे जो आज भी हमारे भारत की संस्कृति और सभ्यता की बात करते है वो दोनों हाथो को फैलाए यही कह रहे होगे ये क्या हो रहा है देश को और हमारी संस्कृति को और आपको यकीन नही होगा कुछ तो हद ही कर देंगे उनका कहना ये होगा की हम तो ऐसा हिंदुस्तान बनाना चाहते थे जिससे पश्चिमी देश की बिन कपड़ो की सभ्यता हमसे कुछ सीख ले लेकिन हमने तो खुद ही उतार दिए उनकी सोच के चश्मे जो ऐसे भारत की कल्पना करते है अब कौन समझाए इन्हें ऐसे देश नही चलेगा कब तक हम विकासशील रहेंगे भई .. अब हमे जल्द से जल्द विकसित होना हैं अब आप ही देख लीजिये विकसित देशो के कानून में जर्मनी-आस्ट्रिया में 14 साल यूरोप-स्पेन में तो 13 साल की उम्र में ही .. मतलब आप समझ रहे है .. क्या बात है हम तरक्की के नये आयाम छू सकते है। वैसे भी अब हमने शुरुआत कर दी है 16 वर्ष की उम्र हमारा पहला पड़ाव है हम धीरे.धीरे और ऊपर भी जा सकते है। अरे .. हमे जल्दी विकसित होना है ना तब।
ख़ैर अब इस फैसले पर मैंने अपनी ख़ुशी तो जाहिर कर दी वैसे पढ़ने में आया है की विपक्ष इसे मस्तिष्क से विकृत लोगो का निर्णय मान रहा हैं अब ऐसा तो नहीं कहना चाहिए ख़ैर .. और तो और जब और पढ़ा तो पाया 16वें साल के इस निर्णय पर मनोवैज्ञानिक इन बच्चो की मानसिक स्थिती पर अपना विज्ञान लगा रहे लेकिन जिनके लिये ये नियम बना उनसे तो किसी ने पूछा ही नही।वैसे हमारे भारतवर्ष में कितने ऐसे घर होंगे जहाँ पर ऐसे विषयों पर खुल कर कर बात होती होगी ? हमारा भारत बसता है गांवो में और उन शहरो के दो.तीन कमरों के छोटे मकानों में जहाँ उस घर के बड़े अपने संस्कारो के पानी से अपने बच्चो की सोच को सीचंते है .. अब ऐसा नही है की जहाँ घर बड़े हैं वहा संस्कार नही क्यूंकि भारत तो वहाँ भी बसता है।
लेकिन हमे ये भी मानना होगा उस पौधे पर मौसम का जंगली जानवरों का और कीड़े लगने का डर लगा रहता है हमारे आस.पास आज ऐसा माहोल है की हमें अपने बच्चो की अपने छोटे भाई.बहनों की और दोस्तों की भी कुछ एक्स्ट्रा केयर बनती है क्यूंकि आस पास का माहोल हमारे बताने से पहले ही उन्हें सबकुछ बता देता है तो अब चुप रहना तो नही बनता न बस थोड़ा तरीका ही तो बदलना है हमें उनके साथ थोड़ा और घुलना. मिलना होगा .. जिसकी शुरुआत हमने कर दी होगी। मुझे ख़ुशी है आज भी हमारे घरो में इतनी सभ्यता जरुर दिखती है की टी.वी पर कुछ ऐसा आये जो परिवार के साथ नही देखने वाला तो चैनल चेंज होने में देर नही लगती मुझे ये नहीं मालूम की मैं कितना सही हूँ। लेकिन अब उनके सवालों को आप नही रोक पाएंगे वारदाते हमेशा बढ़ती रहेगी .. उल्टी .सीधी फिल्मे विज्ञापन बनते रहेंगे.छपते रहंगे क्यूंकि इनकी एक अलग मार्किट है एक अलग ऐज ग्रुप है वो अपना काम करेंगे और हम अपना। बड़ो ने कहा है और हम छोटो ने सुना है की पहला गुरुकुल हमारा घर ही होता है ।मुझे आज के टीनेजर्स पर नाज़ है क्यूंकि वो हमसे ज्यादा टैलेंटेड है .. सही और गलत की समझ है उन्हे।
हम ये भी जरुर मानेंगे कि हामरे आस -पास इस ऐज ग्रुप के बच्चो के साथ बहुत कुछ गलत भी है।लेकिन जो सही है वो और सुधार ला सकते हैं और हाँ जाते-जाते आपसे ये जरुर कहूँगा कि बदलाव आएगा और जरुर आएगा ..लायेंगे हम और आप और विदेशियों को आगे चलकर हमसे बहुत कुछ सीखना है क्यूंकि पहला जीरो भी हमने ही दिया था और आखिरी भी हम ही देंगे। मुस्कुराते रहिये।
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