भूल गए
हम ..दागी का दाग.?
याद
है आपको - हम क्या भूल
गए ?..ऐसी कई
घटनाएं हमें हमारी
जिंदगी में याद
रह जाती है
जो एक भूल
की वजह से
घट गई थी.लेकिन कभी-
कभी कुछ
भूल ऐसी होती
है जिनकी भरपाई
हम आने वाले
समय में नहीं
कर पाते..भूलना-
एक बीमारी,एक
आदत या एक
गलती. इन सब
के अलावा हमारा
देश इस समय
एक ऐतिहासिक घनाक्रम
से गुजर रहा
.अपने आस-पास
कुछ तजुर्बेकार लोगो
से टी.वी
न्यूज़ चैनल्स पर
और अखबारों में
ये देखने सुनने
और पढ़ने को
मिल रहा है
की इस बार
के चुनाव ऐतिहासिक
चुनाव है ये
देश के बदलाव
का चुनाव है.
लेकिन कहीं न
कहीं कुछ ऐसा
जरूर है जो
हम देख कर
भी अनदेखा कर
रहे है,जो
सच सामने है
उसे भूलने की
और नजरअंदाज करने
की कोशिश
कर रहे है.हो सकता
है इसमें हमारा
निजी स्वार्थ छिपा
हो लेकिन देश
में अमन चैन
स्वार्थ से नहीं
हर किसी के
सम्मान से बना
रहता है. तो
क्या हम इस
बार फिर किसी
दागी का दाग
भूल जायेंगे.जो
टिकट मिलने के
बाद खुद के
कारनामो को खादी
से लपेट कर
हमारे सामने हाथ
जोड़े खड़े होंगे.
वैसे
मुझे इतना जरूर
विश्वास है की
उस ईश्वर ने
हमे जो वरदान
स्वरुप भूलने की जो क्षमता हमे दी
है वो गजब
है..हम बड़ी
से बड़ी त्रासदी
, अपनों से मिले
दुःख या कोई
अप्रिय घटना को
कुछ समय बाद
खुद को समझाते
हुए-खुद से
लड़ते हुए भूल
ही जाते है
क्युंकि हमे जिंदगी
में आगे बढ़ना
होता है और
हमसे जुडी होती
है कुछ जिम्मेदारिया
जिसके लिए हम
खुद की जिंदगी
को रोक नहीं
सकते.
तो
जब हम इतना
जानते है और
ये समझते है
तो फिर क्यों
हम उन्हें चुनते
है जो उस
सिस्टम को नुकसान
पहुंचा सकते है
जिससे वो हमारे
माध्य्म से अपने
निजी फायदे चाहते
है.हम जानते
है कई ऐसे
लोग अगर सिस्टम
में रहते है
तो वो सब
बुरी तरह बढ़ेगा
जिसे हम रोकने
के लिए वोट
करेंगे.
हम भूल
गए है पिछले
बीस-तीस सालो
में घटे उन
बड़े घोटालो को
जिससे आज तक
हमारे देश की
अर्थव्यवस्था जूझ रही
है और खोखली
हो गई.क्युंकि
हर बार किसी
दागी ने हमारे
टैक्सेज और हमारे
लिए बनाई हुई
योजनाओ से बनाया
है अपने लिए
काले धन का
साम्राजय जिन्हे हमने वोट
देकर जिताया था.
हमारे
लोकतंत्र में चुनाव
एक उत्सव माना
जाता है इतिहास
फिर खुद को
दोहरा रहा है
और ये हर
पांच सालो में
अपने आपको दोहराता
है.लेकिन हम
हर बार इसे खुद
के लिए आने
वाली त्रासदी की तरह
मानते है जिसके
जिम्मेदार हम खुद
होते है.और
अपने हाथो से
खोदे हुए उस
गड्ढे को अगले
पांच सालो तक
ये कहते हुए
भरते है की
भूल से ये
भूल हो गई
जिसे हमे भूल
जाना चाहिए .
लेकिन
ख़ुशी इस बात
की है की
पहले से अब
फर्क मालूम होता
है अपने
अंदर एक उम्मीद
का और उस
जज्बे को जगाने
का जो अपनी बात
पर अडिग रहकर
बदलाव चाहता है
वो उम्मीद हममे
से हर किसी
में जागी है
हममें से हर
किसी ने अपनी
अहमियत को एक
पहचान देना शुरू
कर दिया है.कुछ को
अभी भी शंका
है इस बदलाव
शब्द और उसकी
परिभाषा पर.हममें
से ही कुछ
बदलना नहीं चाहते
कुछ को बदलने
दिया नहीं जा
रहा.कुछ अविश्वास
से भरे है
और कुछ ये
कहते हुए नहीं
थकते की सिस्टम
में कितनी खामियां
है इस देश
का कुछ नहीं
हो सकता और
ये कहते ही
वो कुछ लोग
भी अनजाने में
इस बिखरते टूटते
सिस्टम का हिस्सा
बन जाते क्युंकि
वो कुछ उन
कोशिश करने वाले
लोगो को भी
तोड़ देते है
जो सिस्टम से
उम्मीद रखते है
और सिस्टम के
लिए कुछ करना
चाहते है.
आपको
पता है अब तक
सात से आठ
बार कुछ शब्द
का प्रोयग हो
चुका है बस
हममे से जो
ये कुछ है
न इन्ही में
या कहे हम
ही में सब
कुछ छिपा है..अब तक जहां-जहां चुनाव
हो चुके है
वहां-वहां वोटिंग
का बढ़ता प्रतिशत
तो यही कह
रहा है की
बदलाव चाहिए ..और
बदलाव हमें कौन
दिला सकता है
ये हम जानते
है कम से
कम एक दागी
नेता तो बिल्कुल
नहीं क्युंकि हम
एकजुट होकर एक
सही व्यक्ति से
सही बदलाव की
उम्मीद कर सकते
है.
वैसे
हमें शुक्रगुजार होना
चाहिए आज की
प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
और चुनाव
आयोग का जो
हम आम नागरिको
तक हर तरह
का प्रयास
करके इस अहम
चुनाव में पारदर्शिता
और जागरूकता बनाये
रख पा रहे
है जिससे हम
सही चुनाव कर
पाये.तो शायद
इस बार ये
विश्वास जागता है की
लोकतंत्र का जादू
चल रहा है.
तो चलिए इस विश्वास
और नए जज्बे
के साथ होने
वाले चमत्कार को
नमस्कार करते है.
जिसे हम मिलकर
करने वाले है
यानि बदलाव.और
हाँ- हम वही
है जो इतिहास
बदलेंगे भी और
बनाएंगे भी.
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