कुछ आँसुओ का फ़लसफ़ा - कभी नुकसान कभी नफा
आप रात में अपने बिस्तर पर सोने से पहले आँखे बंद करने के बाद और नींद आने तक क्या सोचते है ?
आज का दिन कैसे बीता, आने वाले कल की क्या प्लानिंग होगी या मेरी जिम्मेदारियां किस तरह पूरी होंगी ,
आप अपने बिस्तर पर मुस्कुराते हुए सोते है या गंभीर विचारो में डूब कर ..
शायद ये सवाल घटती -बढ़ती उम्र के साथ अपने जवाब की मंज़िल तक पहुंच जाते है।
हमारे हालात हम पर हर तरह से अपना असर छोड़ते है। हमारे सोने से पहले और सोने के बाद भी।

इस एक जिंदगी में जीने के लिए हमारी इंटरनल मजबूती का हमारे साथ होना जरुरी है लेकिन आप ये ठान ले की आप कभी आंसू नहीं बहायेंगे तो क्या ये हमारे अंदर बसी एक तरह की कमजोरी का ही हिस्सा है। हम चाहे या न चाहे आँसुओ से दूर रहना मुश्किल है फिर हमारे अन्दर की मजबूती कहाँ ठहरती है ? चलिए मिलकर टटोलते है अपने आसुंओ के फ़लसफ़े को जहां नुकसान -नफे के तराज़ू की तौल हमसे कुछ कहती है शायद।
इनके बारे में जब भी पढ़ा -सुना वो दर्द और तकलीफ से भरा ही था तो क्या ये आंसू दर्द का ही प्रतिबिम्ब है ?…हममे से कई ऐसा मानते है आंसू हमेशा से कमजोर व्यक्तित्व का पर्याय रहा है तो क्या ये पूरा सच है या कई बार साबित हो चुका इसका एक पक्ष यह भी है की जब हम अपनी व्यक्तित्व नुमा दीवारो को बरबस और बेतरतीब बहते आंसुओ से सींचते है तो उसके बाद की मजबूती बेजोड़ होती है वैसे आंसू हमारी भावनाओ से जुड़ा एक ऐसा सजीव और प्रत्यक्ष सच है जो वास्तविक दुःख और सच्चे सुख दोनों में साथ होते है तो क्या यही तक है उन आंसुओ की मंजिल जो बह जाते है यूंही कभी-कभी या वक़्त की नज़ाकत इन्हे थोड़ा और जानने के लिए एक अलग नज़रिये की मांग करती है तो ये सच है और..यकीनन हमारे आंसू बहते है जब हमारा यकीन टूटता है , जब हमारा विश्वास टूटता है - हमारी उम्मीद टूटती है और हमारे आंसू जब बहते है जब हमारा प्यार टूटता है लेकिन आंसू बहाना और आंसू बहाते रहने में फर्क है।
हमारी जिंदगी में कितनी तोड़ -फोड़ हुई इसका हम पर और हमारे अपने जिन्हे हमारी फ़िक्र है उनके अलावा और दुनिया में किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

सबकुछ तो हमारे हाथ में नहीं लेकिन कुछ परिस्थितियों की जिम्मेदारी हमारी खुद की बनती है। हम आंसुओ
और मुस्कुराहट में से क्या चुनते है ये हमारा फैसला है। हम किसके लिए कितना इस्तेमाल हुए या हमें इस्तेमाल किया गया , हमारे साथ क्या बुरा हुआ कितना बुरा हुआ ये जिंदगी के वो पिछले पन्ने है जिन्हे हम यादो में ही पलटते है। हमारा दर्द और हमारे आंसू हमारा भविष्य नहीं हो सकते।
लेकिन इन आंसुओ के भंवर में हिचकोले खाती हमारी नाँव मेरे कुछ पिछले सवालो से घिरी नजर आती है , जहाँ हम ठान ले कि हम कभी आंसू नहीं बहायेंगे - तो क्या ये हमारे कमजोर व्यव्क्तित्व का ही हिस्सा ?..फिर कहाँ ठहरती हैं हमारी मजबूती ? और ये आंसू हमारे लिए क्यों जरुरी है ?
तो अब शायद हम अपने सवालो के आस-पास है - हमारा ये ठान लेना और आंसू न बहाना हमारी कमजोरी नहीं हमारे खुद के आत्मसम्मान के प्रति हमारा सकारात्मक रवैया है और हमारे आंसू एवैं किसी के सामने क्यों आयेगे भला...वो क़ीमती है बहुत बेशकीमती है ..उनके कीमती होने का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हो कि जब तक हमारे आंसू हमारे अंदर है तब तक हम बेहद मजबूत है और जब कभी वो बाहर आ भी जाये तो समझ लीजियेगा कि आपने अपनी जिंदगी के एक अलग पहलु को एक नए तज़ुर्बे , नई तालीम औए एक मजबूत समझ के साथ उसे उसके अगले पड़ाव तक पंहुचा दिया है।
खुशी बाटियें और खुश रहिये , आपका दोस्त _ रितेश कुमार निश्छल
Pictures By; Google
खुशी बाटियें और खुश रहिये , आपका दोस्त _ रितेश कुमार निश्छल
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आँसुओ के फ़लसफे को समझना अच्छा लगा।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपका लेखन...
शिक्षक दिवस व कृष्ण जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें!
Thank You So Much Mam..
ReplyDeleteApko Bhi Teacher's Day Aur Janmastmi Ki Bhoot-Bhoot Subhkamnaaye.