मेरी और सिर्फ मेरी …तुम
तेरे इश्क़ में मैं तेरे साथ हूँ। .. मैं तो हर वक़्त तेरे पास बहुत पास हूँ। ....
तू याद नहीं आती ……… ऐसा तो नहीं हैं
तू मेरे आस -पास मेरी साँसों में …
मेरी रूह की तरह मुझमे ही है।
अरे हाँ.… देखो तो मुझ पर बेफ़िक्री सवार ऐसी हुई ...
न मालूम चला.. कि मेरी शख़्सियत में.. तेरी रूह में शुमार कैसे हुई।
बस वो दिन , वो शाम और वो रात एक ख़्वाब सा लगता है…
कि जैसे वो मेरी खामोश मुस्कुराहटों का जवाब सा लगता है।
तुम्हे पता है आज भी वही तारीख वही दिन है
और शाम भी कुछ वैसी ही तेरे बिन है।
पानी की बूंदे बदस्तूर बरस रही है.…
जैसे खुद प्यासी है और पानी को तरस रही है।
तुम्हे याद है उस दिन तुम्हारे इन्तज़ार में.....
मैं बैठा सीढ़ियों पर... दूर बदलो में.. चेहरा तलाश रहा था तुम्हारा। ....
उस रिमझिम बारिश में तुम थी। … एक बड़ी मुस्कराहट लिए गुमसुम सी।
० पता है क्या मन में सोच रहा था मैं.… देख कर तुम्हे दूर से ही....
कि तुम मुझे मेरी जिंदगी की 'उम्मीद ' दिखती हो ;
मेरे हर अधूरे ख़्वाब की पूरी 'तस्वीर' दिखती हो,
मेरे लड़खड़ाते कदमो की आसान राह हो तुम.…
मुझ बिन पंख परिन्दे का खुला आसमान हो तुम।
तुम दूर थी तो तुम्हारे खयालो में... जब पास आई तो तुममे मैं खो गया।
.......... आज एक बार फिर तुमको देखा तो कुछ हो गया।
न जाने क्यों उस दिन ऐसा लगा …
के.............. आज मौसम की शरारत भी मनमाफिक नहीं थी...
कड़कती बिजलियां रात के अँधेरे वाक़िफ़ नहीं थी।
कुछ इस तरह तुम मेरे आगोश में थे.....
न तुम होश में थे न हम होश में थे।
कुछ सोचकर मैंने तुमको खुद से अलग किया,
तुमने कहा. . क्या हुआ ?
तुम्हे जाना होगा शायद , देखो न समय कितना हुआ।
तुम झटककर उठी.... मुझसे रूठी-रूठी।
मैंने हाथ थामा तुम्हारा……
(मैं ) - मैंने कभी नहीं कहा जाओ ऐसे अभी।
(तुम ) - पर ये भी तो नहीं कहा के रुको अभी।
तुम्हारे आँखों के बादल गहरा रहे थे.…
बारिश के आसार नज़र आ रहे थे।
तुम्हारा हाथ पकड़कर तुम्हे बैठाया,
बस ज्योंही वो कम्बख़्त आंसू नजर आया।
अपने होंठो से तुम्हारे आँखों के आँसू चुरा लिए मैंने।
बस फिर तुमने जो किया, ………
कस कर कस लिया तुमने मुझे अपनी बाँहो में ,
कुछ इस तरह के तुम मेरी सांस हमेशा से हो,
कुछ इस तरह के तुम मेरी आस हमेशा से हो ,
कुछ इस तरह जैसे तुम मेरी प्यास हमेशा से हो
कुछ इस तरह तुम मुझमे समाती चली गयी। ..
कि तुम मेरा अहसास हमेशा से हो।
बस अब हम युहीं डूब रहे थे..... प्यार की बारिश में...
अब हर पल गुज़र रहा एक नया फ़साना
और पास आने की सिफारिश में।
उन लम्हों में ……कुछ ऐसा महसूस हुआ,
जैसे सागर में डूबते सूरज की तपिश गुम गयी हो ,
जैसे तपती ज़मीन पर बर्फ की चादर जम गयी हो ,
अब मरने के बाद ख़्वाहिश नहीं जन्नत की ,
अब पूरी हो कोई फरियाद,जरुरत नहीं ऐसी मन्नत की।
बस उस रात के आखिरी पलो में..........
तुम्हारे सुर्ख़ होठो से होते हुए उन झुकी हुई पलकों से मैंने पूछा...??
जब तुम मुझे पूरी मोहब्बत भरी नरमी से चूमते हो ,
तो आखो को अपनी पलकों से क्यों मूंदते हो…?
बहुत सहूलियत भरा जवाब मिला तुमसे…
जब सजदे में हो दुआ हम उस जगह को चूमते है और पूरी शिद्दत से आँखे मूंदते है,
तो क्यों न पलके बंद हो अब.....जो दुआ में माँगा वो सामने हो जब... ।।
ये इश्क़ ऐसा भी है जो पूरी मुराद सा है। …ये इश्क़ ऐसा भी है जो अधूरी अरदास सा है।
तुझे पा लेना ही सबकुछ नहीं था,....
तू अब मेरी रूह में है...ये अब जिंदगी से कम नहीं था।
तेरे इश्क़ में मैं तेरे साथ हूँ। .. मैं तो हर वक़्त तेरे पास बहुत पास हूँ। ....
तू याद नहीं आती ……… ऐसा तो नहीं हैं
तू मेरे आस -पास मेरी साँसों में …
मेरी रूह की तरह मुझमे ही है।
तेरे जवाब के इंतज़ार में …
तेरा और सिर्फ तेरा … मैं।
तेरे इश्क़ में मैं तेरे साथ हूँ। .. मैं तो हर वक़्त तेरे पास बहुत पास हूँ। ....
तू याद नहीं आती ……… ऐसा तो नहीं हैं
तू मेरे आस -पास मेरी साँसों में …
मेरी रूह की तरह मुझमे ही है।
अरे हाँ.… देखो तो मुझ पर बेफ़िक्री सवार ऐसी हुई ...
न मालूम चला.. कि मेरी शख़्सियत में.. तेरी रूह में शुमार कैसे हुई।
बस वो दिन , वो शाम और वो रात एक ख़्वाब सा लगता है…
कि जैसे वो मेरी खामोश मुस्कुराहटों का जवाब सा लगता है।
तुम्हे पता है आज भी वही तारीख वही दिन है
और शाम भी कुछ वैसी ही तेरे बिन है।
पानी की बूंदे बदस्तूर बरस रही है.…
जैसे खुद प्यासी है और पानी को तरस रही है।
तुम्हे याद है उस दिन तुम्हारे इन्तज़ार में.....
मैं बैठा सीढ़ियों पर... दूर बदलो में.. चेहरा तलाश रहा था तुम्हारा। ....
उस रिमझिम बारिश में तुम थी। … एक बड़ी मुस्कराहट लिए गुमसुम सी।
० पता है क्या मन में सोच रहा था मैं.… देख कर तुम्हे दूर से ही....
कि तुम मुझे मेरी जिंदगी की 'उम्मीद ' दिखती हो ;
मेरे हर अधूरे ख़्वाब की पूरी 'तस्वीर' दिखती हो,
मेरे लड़खड़ाते कदमो की आसान राह हो तुम.…
मुझ बिन पंख परिन्दे का खुला आसमान हो तुम।
तुम दूर थी तो तुम्हारे खयालो में... जब पास आई तो तुममे मैं खो गया।
.......... आज एक बार फिर तुमको देखा तो कुछ हो गया।
न जाने क्यों उस दिन ऐसा लगा …
के.............. आज मौसम की शरारत भी मनमाफिक नहीं थी...
कड़कती बिजलियां रात के अँधेरे वाक़िफ़ नहीं थी।
कुछ इस तरह तुम मेरे आगोश में थे.....
न तुम होश में थे न हम होश में थे।
कुछ सोचकर मैंने तुमको खुद से अलग किया,
तुमने कहा. . क्या हुआ ?
तुम्हे जाना होगा शायद , देखो न समय कितना हुआ।
तुम झटककर उठी.... मुझसे रूठी-रूठी।
मैंने हाथ थामा तुम्हारा……
(मैं ) - मैंने कभी नहीं कहा जाओ ऐसे अभी।
(तुम ) - पर ये भी तो नहीं कहा के रुको अभी।
तुम्हारे आँखों के बादल गहरा रहे थे.…
बारिश के आसार नज़र आ रहे थे।
तुम्हारा हाथ पकड़कर तुम्हे बैठाया,
बस ज्योंही वो कम्बख़्त आंसू नजर आया।
अपने होंठो से तुम्हारे आँखों के आँसू चुरा लिए मैंने।
बस फिर तुमने जो किया, ………
कस कर कस लिया तुमने मुझे अपनी बाँहो में ,
कुछ इस तरह के तुम मेरी सांस हमेशा से हो,
कुछ इस तरह के तुम मेरी आस हमेशा से हो ,
कुछ इस तरह जैसे तुम मेरी प्यास हमेशा से हो
कुछ इस तरह तुम मुझमे समाती चली गयी। ..
कि तुम मेरा अहसास हमेशा से हो।
बस अब हम युहीं डूब रहे थे..... प्यार की बारिश में...
अब हर पल गुज़र रहा एक नया फ़साना
और पास आने की सिफारिश में।
उन लम्हों में ……कुछ ऐसा महसूस हुआ,
जैसे सागर में डूबते सूरज की तपिश गुम गयी हो ,
जैसे तपती ज़मीन पर बर्फ की चादर जम गयी हो ,
अब मरने के बाद ख़्वाहिश नहीं जन्नत की ,
अब पूरी हो कोई फरियाद,जरुरत नहीं ऐसी मन्नत की।
बस उस रात के आखिरी पलो में..........
तुम्हारे सुर्ख़ होठो से होते हुए उन झुकी हुई पलकों से मैंने पूछा...??
जब तुम मुझे पूरी मोहब्बत भरी नरमी से चूमते हो ,
तो आखो को अपनी पलकों से क्यों मूंदते हो…?
बहुत सहूलियत भरा जवाब मिला तुमसे…
जब सजदे में हो दुआ हम उस जगह को चूमते है और पूरी शिद्दत से आँखे मूंदते है,
तो क्यों न पलके बंद हो अब.....जो दुआ में माँगा वो सामने हो जब... ।।
ये इश्क़ ऐसा भी है जो पूरी मुराद सा है। …ये इश्क़ ऐसा भी है जो अधूरी अरदास सा है।
तुझे पा लेना ही सबकुछ नहीं था,....
तू अब मेरी रूह में है...ये अब जिंदगी से कम नहीं था।
तेरे इश्क़ में मैं तेरे साथ हूँ। .. मैं तो हर वक़्त तेरे पास बहुत पास हूँ। ....
तू याद नहीं आती ……… ऐसा तो नहीं हैं
तू मेरे आस -पास मेरी साँसों में …
मेरी रूह की तरह मुझमे ही है।
तेरे जवाब के इंतज़ार में …
तेरा और सिर्फ तेरा … मैं।
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