अगर सच कहूं तो ऐसा कुछ 'ब्लॉग' पर लिखते वक़्त बहुत अलग सा लग रहा है इसकी वजह ये है कि कुछ
ऐसा याद आया मुझे जिसने मुझे मेरी कालेज लाइफ के कुछ पुराने गंदे थोड़े से मटमैले पन्नो कि याद दिला दी। जी हाँ ये वो पन्ने हैं जिन्हें आप भूलकर भी भूलकर नही पाएंगे क्यूंकि वो गन्दा सा मोटा सा रजिस्टर हैं जो घर में बेपरवाही से यूंही इधर-उधर पड़ा रहता था और कुछ तो उसे फिर भी बहुत सजा कर और सम्भाल कर रखते थे.. हाँ जी हाँ ..मैं आपके रफ रजिस्टर की बात कर रहा हूँ ।लेकिन वो एक्साम्स टाइम में हमारे लिए जरुरी नोट्स का ऐसा ग्रुप बन जाता था।जो उस वक़्त सबसे जरुरी हो जाता था क्यूंकि उस वक़्त हमे अपने उस रफ वर्क की अहमियत पता चल जाती थी ।उस रजिस्टर के सारे रफ नोट्स ने हमें हमारी जिंदगी को फेयर करके उसे चमकने का मौका दिया और जाने अन्जाने ये सिखा दिया कि.. 'जन्दगी में भी रफ जरुरी है।'
वैसे हमारी जिन्दगी में रफ का काम शुरू तो कागज के पन्नो से होता है बस उसे जिंदगी में उतारने में हम यही-कही चूक जाते है।लेकिन हममे से ही कुछ ऐसे लोग पनपते है जो अपनी जिंदगी को इस तरह परिभाषित करते है कि वो खुद में ही एक परिभाषा बन जाते है।अपनी लाइफ स्टाइल से इन्होने मुझे भी बहुत प्रभावित किया और मेरे जीवनशैली की कार्यशैली पर इनके इस आर्टिकल का अच्छाखासा असर रहा।जो मुझे आज से कुछ साल पहले मास्टर-ब्लास्टर के एक बहुत बेहतरीन आर्टिकल कम इंटरव्यू में पढने को मिला। जिस शक्सियत का नाम मैंने यूंही जल्दी से ले लिया उनके नाम खुद कितने रिकॉर्ड है।ये उन्हें खुद ध्यान हो तो बड़ी बात है।लेकिन रिकॉर्ड बनते कैसे है और मैच दर मैच इस खिलाड़ी की क्या प्लानिंग होती होगी।हर मैच के पहले जब ये बल्ला उठाते होंगे तो क्या सोचते होंगे।बस वो एक छोटी सी बात-
उतने बड़े से आर्टिकल में सचिन सर की कही वो 5-6 लाइन्स की बात .मेरे दिमाग को बेहतरीन जिंदगी का फार्मूला देते चले गये कि जब उन्होंने कहा .."जब भी मै अपने हर मैच को खेलने से पहले अपने ड्रेसिंग रूम में अपने ग्लव्स और पैड पहन रहा होता हूँ और मैच शुरू होने का इंतजार करता हूँ।तब मैं दिमागी तौर पर 3-से-4 बार पिच का मुआइना कर आता हूँ। यानि मैच शुरू होने से पहले मैं अपनी बैटिंग को अपनी दिमागी पिच पर शुरू कर चूका होता हूँ। .. कहने का मकसद इतना हैं ..की किसी भी काम को शूरु और ख़त्म करने के लिए 'दिमागी मजबूती' का होना जरुरी हैं।""..मैं यह ये तो नही कहूँगा कि यहाँ जो लिखा है।इसमें से एक-एक शब्द उस शक्सियत के हैं ..लेकिन हाँ मैच शुरू होने से पहले दिमागी तौर पर 3 से 4 बार अपनी बैटिंग शुरू करने की बात जरुर कही।उन्होंने अपनी बातचीत में दिमागी मजबूती की बात को ज्यादा फोकस किया। आख़िर हमारे मास्टर ब्लास्टर किस तरह की दिमागी मजबूती की बात कर रहे हैं अगर मैं इसे एक और वाक्ये के ज़रिये समझने की कोशिश करू तो भोजपुरी अभिनेता और गायक मनोज तिवारी जी के एक इंटरव्यू में मैंने पढ़ा कि जब वो अपने जीवन की महत्वपूर्ण भोजपुरी फिल्म 'गंगा '.कर रहे थे तो उस फिल्म से उन्हें बेहतरीन अनुभव मिला। इसका श्रेय ये सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन जी को देते है।अपने फेयर वर्क से पहले अपने रफ वर्क को अंजाम देने का काम बख़ूबी करते देखा था मनोज जी ने उस महानायक को। जब वो अपने शूटिंग के सेट पर पहुँचे तो उन्होंने वहाँ अमित जी को अपने भोजपुरी के डायलॉग्स को स्टडी करते देखा वो अपने साथ- साथ मनोज जी की भी स्क्रिप्ट की स्टडी कर रहे थे और प्रैक्टिस कर रहे थे। मनोज जी को उन्हें ऐसा करता देख हैरानी हुई। आज हर छोटा-बड़ा शख्स अपने हर छोटे-बड़े मुकाम पर अपनी सोच की हर एक ईंट को जोड़ता हुआ अपनी मुकामनुमा ईमारत को तैयार करता हैं।लेकिन हर बार उस ईंट को रखने,जोड़ने से पहले दिमागी तौर पर इसकी कितनी बार तैयारी की गई होगी शायद इसी का एक हिस्सा दिमागी मजबूती कहलाता हैं। कुल मिलकर बात ये समझ में आती हैं कि इस तरह से हर इन्सान के अन्दर एक कलाकार हैं जो अपनी पहचान नही अपने काम की सोच के पीछे भागता हैं।यानि के अगर कोई संगीतकार हैं तो उसके दिमाग का एक हिस्सा हमेशा सुरों का पीछा करेगा हर गिरती पड़ती चीज और आसपास की धव्नि में सरगम तलाशेगा । अगर कोई बेहतरीन डांसर है तो वो हर चलती फिरती चीज में एक नया मूव खोजने की कोशिश करेगा और अगर कोई जुबान के ज़ाएके का धनि है तो जुबान पर कुछ रखते ही उसके दिमाग का एक हिस्सा उसकी रेसिएपे के बारे में सोचेगा और उस डिश को और बेहतर कैसे बनाया जा सकता है ये सोचेगा उसका रफ वर्क हमेशा अपने कम के प्रति सक्रिय रहेगा। तो अगर हम मास्टर ब्लास्टर की बात समझे तो हमारा मेंटली वर्क यानि खुद को दिमागी तौर पर मजबूती के साथ तैयार करना किसी भी काम को शुरू करने से पहले बेहद जरुरी हैं। ..इससे कम से कम हम अपने हुनर के मास्टर ब्लास्टर तो जरुर बन सकेंगे ।इसलिए जिंदगी भी में 'रफ' बेहद जरुरी हैं।
वैसे हमारी जिन्दगी में रफ का काम शुरू तो कागज के पन्नो से होता है बस उसे जिंदगी में उतारने में हम यही-कही चूक जाते है।लेकिन हममे से ही कुछ ऐसे लोग पनपते है जो अपनी जिंदगी को इस तरह परिभाषित करते है कि वो खुद में ही एक परिभाषा बन जाते है।अपनी लाइफ स्टाइल से इन्होने मुझे भी बहुत प्रभावित किया और मेरे जीवनशैली की कार्यशैली पर इनके इस आर्टिकल का अच्छाखासा असर रहा।जो मुझे आज से कुछ साल पहले मास्टर-ब्लास्टर के एक बहुत बेहतरीन आर्टिकल कम इंटरव्यू में पढने को मिला। जिस शक्सियत का नाम मैंने यूंही जल्दी से ले लिया उनके नाम खुद कितने रिकॉर्ड है।ये उन्हें खुद ध्यान हो तो बड़ी बात है।लेकिन रिकॉर्ड बनते कैसे है और मैच दर मैच इस खिलाड़ी की क्या प्लानिंग होती होगी।हर मैच के पहले जब ये बल्ला उठाते होंगे तो क्या सोचते होंगे।बस वो एक छोटी सी बात-
उतने बड़े से आर्टिकल में सचिन सर की कही वो 5-6 लाइन्स की बात .मेरे दिमाग को बेहतरीन जिंदगी का फार्मूला देते चले गये कि जब उन्होंने कहा .."जब भी मै अपने हर मैच को खेलने से पहले अपने ड्रेसिंग रूम में अपने ग्लव्स और पैड पहन रहा होता हूँ और मैच शुरू होने का इंतजार करता हूँ।तब मैं दिमागी तौर पर 3-से-4 बार पिच का मुआइना कर आता हूँ। यानि मैच शुरू होने से पहले मैं अपनी बैटिंग को अपनी दिमागी पिच पर शुरू कर चूका होता हूँ। .. कहने का मकसद इतना हैं ..की किसी भी काम को शूरु और ख़त्म करने के लिए 'दिमागी मजबूती' का होना जरुरी हैं।""..मैं यह ये तो नही कहूँगा कि यहाँ जो लिखा है।इसमें से एक-एक शब्द उस शक्सियत के हैं ..लेकिन हाँ मैच शुरू होने से पहले दिमागी तौर पर 3 से 4 बार अपनी बैटिंग शुरू करने की बात जरुर कही।उन्होंने अपनी बातचीत में दिमागी मजबूती की बात को ज्यादा फोकस किया। आख़िर हमारे मास्टर ब्लास्टर किस तरह की दिमागी मजबूती की बात कर रहे हैं अगर मैं इसे एक और वाक्ये के ज़रिये समझने की कोशिश करू तो भोजपुरी अभिनेता और गायक मनोज तिवारी जी के एक इंटरव्यू में मैंने पढ़ा कि जब वो अपने जीवन की महत्वपूर्ण भोजपुरी फिल्म 'गंगा '.कर रहे थे तो उस फिल्म से उन्हें बेहतरीन अनुभव मिला। इसका श्रेय ये सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन जी को देते है।अपने फेयर वर्क से पहले अपने रफ वर्क को अंजाम देने का काम बख़ूबी करते देखा था मनोज जी ने उस महानायक को। जब वो अपने शूटिंग के सेट पर पहुँचे तो उन्होंने वहाँ अमित जी को अपने भोजपुरी के डायलॉग्स को स्टडी करते देखा वो अपने साथ- साथ मनोज जी की भी स्क्रिप्ट की स्टडी कर रहे थे और प्रैक्टिस कर रहे थे। मनोज जी को उन्हें ऐसा करता देख हैरानी हुई। आज हर छोटा-बड़ा शख्स अपने हर छोटे-बड़े मुकाम पर अपनी सोच की हर एक ईंट को जोड़ता हुआ अपनी मुकामनुमा ईमारत को तैयार करता हैं।लेकिन हर बार उस ईंट को रखने,जोड़ने से पहले दिमागी तौर पर इसकी कितनी बार तैयारी की गई होगी शायद इसी का एक हिस्सा दिमागी मजबूती कहलाता हैं। कुल मिलकर बात ये समझ में आती हैं कि इस तरह से हर इन्सान के अन्दर एक कलाकार हैं जो अपनी पहचान नही अपने काम की सोच के पीछे भागता हैं।यानि के अगर कोई संगीतकार हैं तो उसके दिमाग का एक हिस्सा हमेशा सुरों का पीछा करेगा हर गिरती पड़ती चीज और आसपास की धव्नि में सरगम तलाशेगा । अगर कोई बेहतरीन डांसर है तो वो हर चलती फिरती चीज में एक नया मूव खोजने की कोशिश करेगा और अगर कोई जुबान के ज़ाएके का धनि है तो जुबान पर कुछ रखते ही उसके दिमाग का एक हिस्सा उसकी रेसिएपे के बारे में सोचेगा और उस डिश को और बेहतर कैसे बनाया जा सकता है ये सोचेगा उसका रफ वर्क हमेशा अपने कम के प्रति सक्रिय रहेगा। तो अगर हम मास्टर ब्लास्टर की बात समझे तो हमारा मेंटली वर्क यानि खुद को दिमागी तौर पर मजबूती के साथ तैयार करना किसी भी काम को शुरू करने से पहले बेहद जरुरी हैं। ..इससे कम से कम हम अपने हुनर के मास्टर ब्लास्टर तो जरुर बन सकेंगे ।इसलिए जिंदगी भी में 'रफ' बेहद जरुरी हैं।
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