आओ मिलकर डर की एक तस्वीर बनाते हैं। अपनी_अपनी बाँहे चढ़ाते हैं, और आज अपने खौफ से लड़कर आते हैं.. आओ मिलकर डर की एक तस्वीर बनाते हैं।। कई घंटे गुजर गए _इस सोच में के_ खौफ की तस्वीर मैं किस पर बनाऊँगा। वो कागज़, वो कलम, वो रंग कहाँ से लाऊंगा। फिर एक फैसले ने सब कुछ बदल दिया। खौफ से लड़कर बात बनेगी नहीं, चलो उससे मिलकर आते है... या फिर आज अपने डर को शाम की चाय पर बुलाते हैं ।। शाम हुई .... किसी ने दरवाज़ा खटखटाया.. सुन आहट मैं लड़खड़ाया .. मैंने कहा_"कौन आया" ? आवाज़ आयी_ मैं हूँ, मैं हूँ डर, मैं आया खोला दरवाज़ा _ डर अंदर आया **** मैंने कहा _"आप समय के बहुत पाबन्द हैं।" डर ने कहा _ "आदत है मेंरी, कोइ सोचे तो सही, कोइ बुलाए तो सही.. बस ज़ेहन में मुझे कोइ लाए तो सही, मैं तो यूंही,यदा-कदा कही भी आ जाऊंगा.. मैं तो डर हूँ _ तुम डरोगे_ मैं डराऊंगा।" मैं _ अपनी भरोसे की कुर्सी संभाल कर, और डर की आंखों में आंखें डालकर। मैंने कहा _ "आप मेहमान _ मैं मेज़बान।" .. बस एक गुत्थी हैं जो सुलझानी है, आपको अपनी कहानी आज खुद बता...
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