START Now Because..END mean's..." Efforts Never Dies. "
Wednesday, January 8, 2025
क्या लिख दूँ जब कलम हाथ हों ?
Sunday, November 24, 2024
खुद को तुम .. बस ढूढ़ लाओ
कहाँ हो तुम , खो गए हो क्या ख़ुद में कहीं।
एक लम्बी सांस लेकर तो ठहरो ,
ढूंढ कर लाओ जहाँ हो तुम।
एक लम्बा रास्ता हैं और मोड़ कई हैं ,
जैसे दरख़्त की शाख़ों में मरोड़ कई हैं।
एक मोड़ पर ठहर कर... मन के मरोड़ साध लो ,
एक लम्बी सांस लेकर तो ठहरो ,
ढूंढ कर लाओ जहाँ हो तुम।
हम खुद का चैन ढूढ़ने चले है बेचैन होकर ही ,
जैसे खुद की ही नाव में सुराख ढूँढ़ते हो,....
चलो ना दुसरे के घाव भरते है ,वो सुराख़ भरते है।
बोलो ना कहा हो तुम ,
एक लम्बी सांस लेकर तो ठहरो ,
ढूंढ कर लाओ जहाँ हो तुम।
लगता है लोगो को हम खो गए हैं ,
सच भी है ,
क्यूंकि अब हम आईना कम देखते हैं।
अपनी खुद की तस्वीर , एक पहचान हमने बना ली है,
खुद को खो कर ही..
पाया जाता है इस सच से बेगाफ़िल है दुनिया। .
और इस सच के साथ हमने अपनी दुनिया बसा ली हैं ,
एक लम्बी सांस लेकर तो ठहरो ,
एक लम्बी सांस लेकर तो ठहरो ....
ढूंढ लाओगे खुद को ... जहाँ हो तुम।
( रितेश कुमार निश्छल )
Sunday, October 27, 2024
बस एक बार तुम और लड़ लेना...
मेरी और सिर्फ मेरी …तुम
तेरे इश्क़ में मैं तेरे साथ हूँ। .. मैं तो हर वक़्त तेरे पास बहुत पास हूँ। ....
तू याद नहीं आती ……… ऐसा तो नहीं हैं
तू मेरे आस -पास मेरी साँसों में …
मेरी रूह की तरह मुझमे ही है।
अरे हाँ.… देखो तो मुझ पर बेफ़िक्री सवार ऐसी हुई ...
न मालूम चला.. कि मेरी शख़्सियत में.. तेरी रूह में शुमार कैसे हुई।
बस वो दिन , वो शाम और वो रात एक ख़्वाब सा लगता है…
कि जैसे वो मेरी खामोश मुस्कुराहटों का जवाब सा लगता है।
तुम्हे पता है आज भी वही तारीख वही दिन है
और शाम भी कुछ वैसी ही तेरे बिन है।
पानी की बूंदे बदस्तूर बरस रही है.…
जैसे खुद प्यासी है और पानी को तरस रही है।
तुम्हे याद है उस दिन तुम्हारे इन्तज़ार में.....
मैं बैठा सीढ़ियों पर... दूर बदलो में.. चेहरा तलाश रहा था तुम्हारा। ....
उस रिमझिम बारिश में तुम थी। … एक बड़ी मुस्कराहट लिए गुमसुम सी।
० पता है क्या मन में सोच रहा था मैं.… देख कर तुम्हे दूर से ही....
कि तुम मुझे मेरी जिंदगी की 'उम्मीद ' दिखती हो ;
मेरे हर अधूरे ख़्वाब की पूरी 'तस्वीर' दिखती हो,
मेरे लड़खड़ाते कदमो की आसान राह हो तुम.…
मुझ बिन पंख परिन्दे का खुला आसमान हो तुम।
तुम दूर थी तो तुम्हारे खयालो में... जब पास आई तो तुममे मैं खो गया।
.......... आज एक बार फिर तुमको देखा तो कुछ हो गया।
न जाने क्यों उस दिन ऐसा लगा …
के.............. आज मौसम की शरारत भी मनमाफिक नहीं थी...
कड़कती बिजलियां रात के अँधेरे वाक़िफ़ नहीं थी।
कुछ इस तरह तुम मेरे आगोश में थे.....
न तुम होश में थे न हम होश में थे।
कुछ सोचकर मैंने तुमको खुद से अलग किया,
तुमने कहा. . क्या हुआ ?
तुम्हे जाना होगा शायद , देखो न समय कितना हुआ।
तुम झटककर उठी.... मुझसे रूठी-रूठी।
मैंने हाथ थामा तुम्हारा……
(मैं ) - मैंने कभी नहीं कहा जाओ ऐसे अभी।
(तुम ) - पर ये भी तो नहीं कहा के रुको अभी।
तुम्हारे आँखों के बादल गहरा रहे थे.…
बारिश के आसार नज़र आ रहे थे।
तुम्हारा हाथ पकड़कर तुम्हे बैठाया,
बस ज्योंही वो कम्बख़्त आंसू नजर आया।
अपने होंठो से तुम्हारे आँखों के आँसू चुरा लिए मैंने।
बस फिर तुमने जो किया, ………
कस कर कस लिया तुमने मुझे अपनी बाँहो में ,
कुछ इस तरह के तुम मेरी सांस हमेशा से हो,
कुछ इस तरह के तुम मेरी आस हमेशा से हो ,
कुछ इस तरह जैसे तुम मेरी प्यास हमेशा से हो
कुछ इस तरह तुम मुझमे समाती चली गयी। ..
कि तुम मेरा अहसास हमेशा से हो।
बस अब हम युहीं डूब रहे थे..... प्यार की बारिश में...
अब हर पल गुज़र रहा एक नया फ़साना
और पास आने की सिफारिश में।
उन लम्हों में ……कुछ ऐसा महसूस हुआ,
जैसे सागर में डूबते सूरज की तपिश गुम गयी हो ,
जैसे तपती ज़मीन पर बर्फ की चादर जम गयी हो ,
अब मरने के बाद ख़्वाहिश नहीं जन्नत की ,
अब पूरी हो कोई फरियाद,जरुरत नहीं ऐसी मन्नत की।
बस उस रात के आखिरी पलो में..........
तुम्हारे सुर्ख़ होठो से होते हुए उन झुकी हुई पलकों से मैंने पूछा...??
जब तुम मुझे पूरी मोहब्बत भरी नरमी से चूमते हो ,
तो आखो को अपनी पलकों से क्यों मूंदते हो…?
बहुत सहूलियत भरा जवाब मिला तुमसे…
जब सजदे में हो दुआ हम उस जगह को चूमते है और पूरी शिद्दत से आँखे मूंदते है,
तो क्यों न पलके बंद हो अब.....जो दुआ में माँगा वो सामने हो जब... ।।
ये इश्क़ ऐसा भी है जो पूरी मुराद सा है। …ये इश्क़ ऐसा भी है जो अधूरी अरदास सा है।
तुझे पा लेना ही सबकुछ नहीं था,....
तू अब मेरी रूह में है...ये अब जिंदगी से कम नहीं था।
तेरे इश्क़ में मैं तेरे साथ हूँ। .. मैं तो हर वक़्त तेरे पास बहुत पास हूँ। ....
तू याद नहीं आती ……… ऐसा तो नहीं हैं
तू मेरे आस -पास मेरी साँसों में …
मेरी रूह की तरह मुझमे ही है।
तेरे जवाब के इंतज़ार में …
तेरा और सिर्फ तेरा … मैं।
Thursday, May 7, 2020
वर्ना सब अहसास की बात है।
ये प्यार , ये इश्क़, ये मोहब्बत की बात है ,
समझो तो फ़ितूर, वर्ना सब अहसास की बात है।।
अपनी कम उम्र से सुना हैं हमने,
इंसानियत_ इंसानियत_इंसानियत का फलसफ़ा ।
महसूस कर लो तो ये सब कुछ है,
वर्ना सब अहसास की बात है।।
कोइ तिलक, कोइ टोपी, कोइ पगड़ी से जुटा है,
कोइ सब्ज़ी, कोइ दाल,कोइ खिचङी से लुटा हैं ।
समझ गए तो_
यही गीता और यही कुरआन हैं,
वर्ना सब अहसास की बात है।।
गलत सही का फेर बड़ा है,
हर कोइ फैसले को खड़ा हैं..
कोइ उंगली उठाकर आँख दिखाए,
कोइ हाथ बढ़ाकर पार लगाए ।
रास्ते दो हैं और कदम तुम्हारे,
वर्ना सब अहसास की बात है।।
किसी ने लाल_
किसी ने हरे में वो क़िताबे लपेट कर रख दी,
जन्नत के उन दरवाजों की चाभी लपेट कर रख दी।
पढ़कर समझने का टाइम किसे है साहब,
सुनकर जो बहके वो परवरिश वो इमान हैं क्या,
ये समझ लो तो सबकुछ,
वर्ना सब अहसास की बात है।।
वर्ना सब अहसास की बात है।।
रितेश कुमार 'निश्छल'
😇
आज शाम की चाय पर डर को बुलाया हैं....
आओ मिलकर डर की एक तस्वीर बनाते हैं।
अपनी_अपनी बाँहे चढ़ाते हैं,
और आज अपने खौफ से लड़कर आते हैं..
आओ मिलकर डर की एक तस्वीर बनाते हैं।।
कई घंटे गुजर गए _इस सोच में के_
खौफ की तस्वीर मैं किस पर बनाऊँगा।
वो कागज़, वो कलम, वो रंग कहाँ से लाऊंगा।
फिर एक फैसले ने सब कुछ बदल दिया।
खौफ से लड़कर बात बनेगी नहीं,
चलो उससे मिलकर आते है...
या फिर
आज अपने डर को शाम की चाय पर बुलाते हैं ।।
शाम हुई ....
किसी ने दरवाज़ा खटखटाया..
सुन आहट मैं लड़खड़ाया ..
मैंने कहा_"कौन आया" ?
आवाज़ आयी_ मैं हूँ, मैं हूँ डर, मैं आया
खोला दरवाज़ा _ डर अंदर आया ****
मैंने कहा _"आप समय के बहुत पाबन्द हैं।"
डर ने कहा _ "आदत है मेंरी,
कोइ सोचे तो सही,
कोइ बुलाए तो सही..
बस ज़ेहन में मुझे कोइ लाए तो सही,
मैं तो यूंही,यदा-कदा कही भी आ जाऊंगा..
मैं तो डर हूँ _ तुम डरोगे_ मैं डराऊंगा।"
मैं _ अपनी भरोसे की कुर्सी संभाल कर,
और डर की आंखों में आंखें डालकर।
मैंने कहा _ "आप मेहमान _ मैं मेज़बान।"
.. बस एक गुत्थी हैं जो सुलझानी है,
आपको अपनी कहानी आज खुद बतानी हैं।
आप कितने दुश्मन _ कितने दोस्त राज़ खोलिए,
मैं सुन रहा हूँ _ आपको ,अब आप बोलिए।"
डर_ " अब मेरे हर अल्फाज़,
तेरे सवाल का जवाब हैं ।
कानो से नही दिल से सुनना,
जो _ मेरे _ ज़ज्बात हैं।"
"तुम्हारी जिंदगी में कब,क्या,
कैसे होगा मैं उसका आधार हूँ।
मैं तुम्हारी सोच में उन सारी _
उधेड़-बुन का सबसे बड़ा साहूकार हूँ।
मैं तुम्हारी सबसे बड़ी चुनौती..
मैं_मैं हूँ , मैं तुम हूँ , तुम मैं हूँ का तिलिस्म हूँ।"
"मेरा हर बार, हर तरह से तुम पर वार होगा,
तुम्हें हराने को..
मेरी नयी शक्ल, नयी चाल नया किरदार होगा।
तुम आभास और कल्पनाओ के डर में गोते खाओगे,
हर बार अपनी जीत से दूर-दूर और दूर होते जाओगे।
डर ने कहा _... "समझो ज़रा दोस्त,
मेरा तुममें होने से ही , तुम्हारे होने का वजूद है।"
और .. सच ये भी हैं,
कि, बदलेगा सबकुछ तुम चाहोगे जो हर बार,
बस करो खुद पर भरोसा और ऐतबार।"
न जीत का खुमार हो,
न हार का बुखार हो।
बस कोशिश और कोशिश बेशुमार हो।
खुश इतने से रहो के बहुत कुछ,
बदलने को तुम ज़िन्दा हो।
मैं डर हूँ जो कमजोरों में घर कर जाता हूँ
मैं वही डर हूँ जो योद्धा भी बनाता हूँ।
तुम्हारे नज़रिये,बीते तजुर्बे..
और तुम्हारी सोच ने मुझे बुना हैं,
हकीकत ये है दोस्त, मैंने तुम्हे नहीं तुमने मुझे चुना है।
मैंने तुम्हे नहीं तुमने मुझे चुना है।"
"इसके बाद चाय खत्म करके डर वहां से जा चुका था।
और मुझे ये समझ में आ गया था,कि आज मैं जो भी हूँ जहां भी हूँ केवल अपने डर की वज़ह से ....
मैं खुद में सुकून और अपने होठों पर मुस्कान महसूस कर रहा था जिससे एक बात तो Clear थी_ कि मेरे अपने डर से मेरी दोस्ती हो गयी हैं और आपकी..??"
एक कोशिश _ रितेश कुमार 'निश्छल'
संघर्ष में ही लक्ष्य और लक्ष्य में ही संघर्ष
मुझे हर कोशिश में,
मंज़िल का अक्स दिखता है।
अपने संघर्ष में ही ,
अपना लक्ष्य दिखता है।।
संघर्ष क्या है,
टूटकर बिखरने से पहले,
चटकना ज़रूरी है।
हो तलाश मुकम्मल ख़्वाब की,
तो भटकना जरूरी है।।
क्योंकि _
जीत के खेल में हर पत्ता,
मनमाफिक नहीं होता।
और _ कई चालो के बाद भी मिला तजुर्बा,
जीत से वाकिफ़ नहीं होता।।
वैसे_ जीत की हर किताब में,
कहानी जद्दोज़हद (संघर्ष) की होती हैं ......
कहानी ..
गिरने की होती हैं,उठने की होती है।
तनाव की होती हैं, बहाव की होती हैं।
लड़ने की होती हैं, बढ़ने की होती हैं ।
आंसुओं की होती हैं,
मुस्कुराहटो की होती हैं।
जीत की हर किताब में,
कहानी जद्दोज़हद (संघर्ष) की होती हैं ।।
मकसद (लक्ष्य) क्या है,
मकसद _ ख्वाब है, इबादत है,सुरूर हैं
ज़ज्बा,हौसला और गुरूर हैं।
मकसद _ तपते रास्ते का सुकून है,
और _ बारहो महीने ये मई और जून है।
जब मोहब्बत अपनी मेहनत से ,
और पसीने से प्यार हो जाए।
हर हालात में, दर्द में, जज्बात में,
मुस्कुराहट शुमार हो जाए।।
तो समझ लेना,
आने वाली जीत को जीने लगे हो तुम।
और, उम्मीद के कपड़े पर,
कोशिशों के धागे से अपना मकसद सीने लगे हो तुम।।
एक प्रयास _ रितेश कुमार 'निश्छल'
Thursday, October 8, 2015
Wednesday, October 7, 2015
खुद से कहना मजबूत रहना। .
These Lines are Inspired By The Efforts of my M.D Sir (Hats Off Sir)