Thursday, May 7, 2020

वर्ना सब अहसास की बात है।


ये प्यार , ये इश्क़, ये मोहब्बत की बात है ,
समझो तो फ़ितूर, वर्ना सब अहसास की बात है।।

अपनी कम उम्र से सुना हैं हमने,
इंसानियत_ इंसानियत_इंसानियत का फलसफ़ा ।
महसूस कर लो तो ये सब कुछ है,
वर्ना सब अहसास की बात है।।

कोइ तिलक, कोइ टोपी, कोइ पगड़ी से जुटा है,
कोइ सब्ज़ी, कोइ दाल,कोइ खिचङी से लुटा हैं ।
समझ गए तो_
यही गीता और यही कुरआन हैं,
वर्ना सब अहसास की बात है।।

गलत सही का फेर बड़ा है,
हर कोइ फैसले को खड़ा हैं..
कोइ उंगली उठाकर आँख दिखाए,
कोइ हाथ बढ़ाकर पार लगाए ।
रास्ते दो हैं और कदम तुम्हारे,
वर्ना सब अहसास की बात है।।

किसी ने लाल_
किसी ने हरे में वो क़िताबे लपेट कर रख दी,
जन्नत के उन दरवाजों की चाभी लपेट कर रख दी।
पढ़कर समझने का टाइम किसे है साहब,
सुनकर जो बहके वो परवरिश वो इमान हैं क्या,
ये समझ लो तो सबकुछ,
वर्ना सब अहसास की बात है।।
वर्ना सब अहसास की बात है।।

रितेश कुमार 'निश्छल'
 😇

"आज शाम की चाय पर डर को बुलाया हैं,"


आओ मिलकर डर की एक तस्वीर बनाते हैं।
अपनी_अपनी बाँहे चढ़ाते हैं,
और आज अपने खौफ से लड़कर आते हैं..
आओ मिलकर डर की एक तस्वीर बनाते हैं।।

कई घंटे गुजर गए _इस सोच में के_
खौफ की तस्वीर मैं किस पर बनाऊँगा।
वो कागज़, वो कलम, वो रंग कहाँ से लाऊंगा।

फिर एक फैसले ने सब कुछ बदल दिया।
खौफ से लड़कर बात बनेगी नहीं,
चलो उससे मिलकर आते है...
या फिर
आज अपने डर को शाम की चाय पर बुलाते हैं ।।

शाम हुई ....
किसी ने दरवाज़ा खटखटाया..
सुन आहट मैं लड़खड़ाया ..

मैंने कहा_"कौन आया" ?

आवाज़ आयी_ मैं हूँ, मैं हूँ डर, मैं आया
खोला दरवाज़ा _ डर अंदर आया ****

मैंने कहा _"आप समय के बहुत पाबन्द हैं।"
डर ने कहा _ "आदत है मेंरी,
कोइ सोचे तो सही,
कोइ बुलाए तो सही..
बस ज़ेहन में मुझे कोइ लाए तो सही,
मैं तो यूंही,यदा-कदा कही भी आ जाऊंगा..
मैं तो डर हूँ _ तुम डरोगे_ मैं डराऊंगा।"

मैं _ अपनी भरोसे की कुर्सी संभाल कर,
और डर की आंखों में आंखें डालकर।
मैंने कहा _ "आप मेहमान _ मैं मेज़बान।"
.. बस एक गुत्थी हैं जो सुलझानी है,
आपको अपनी कहानी आज खुद बतानी हैं।
आप कितने दुश्मन _ कितने दोस्त राज़ खोलिए,
मैं सुन रहा हूँ _ आपको ,अब आप बोलिए।"

डर_ " अब मेरे हर अल्फाज़,
तेरे सवाल का जवाब हैं ।
कानो से नही दिल से सुनना,
जो _ मेरे _ ज़ज्बात हैं।"

"तुम्हारी जिंदगी में कब,क्या,
कैसे होगा मैं उसका आधार हूँ।
मैं तुम्हारी सोच में उन सारी _
उधेड़-बुन का सबसे बड़ा साहूकार हूँ।
मैं तुम्हारी सबसे बड़ी चुनौती..
मैं_मैं हूँ , मैं तुम हूँ , तुम मैं हूँ का तिलिस्म हूँ।"

"मेरा हर बार, हर तरह से तुम पर वार होगा,
तुम्हें हराने को..
मेरी नयी शक्ल, नयी चाल नया किरदार होगा।
तुम आभास और कल्पनाओ के डर में गोते खाओगे,
हर बार अपनी जीत से दूर-दूर और दूर होते जाओगे।

डर ने कहा _... "समझो ज़रा दोस्त,
मेरा तुममें होने से ही , तुम्हारे होने का वजूद है।"
और .. सच ये भी हैं,
कि, बदलेगा सबकुछ तुम चाहोगे जो हर बार,
बस करो खुद पर भरोसा और ऐतबार।"
न जीत का खुमार हो,
न हार का बुखार हो।
बस कोशिश और कोशिश बेशुमार हो।
खुश इतने से रहो के बहुत कुछ,
बदलने को तुम ज़िन्दा हो।
मैं डर हूँ जो कमजोरों में घर कर जाता हूँ
मैं वही डर हूँ जो योद्धा भी बनाता हूँ।
तुम्हारे नज़रिये,बीते तजुर्बे..
और तुम्हारी सोच ने मुझे बुना हैं,
हकीकत ये है दोस्त, मैंने तुम्हे नहीं तुमने मुझे चुना है।
मैंने तुम्हे नहीं तुमने मुझे चुना है।"

"इसके बाद चाय खत्म करके डर वहां से जा चुका था।
और मुझे ये समझ में आ गया था,कि आज मैं जो भी हूँ जहां भी हूँ केवल अपने डर की वज़ह से ....
मैं खुद में सुकून और अपने होठों पर मुस्कान महसूस कर रहा था जिससे एक बात तो Clear थी_ कि मेरे अपने डर से मेरी दोस्ती हो गयी हैं और आपकी..??"

एक कोशिश _ रितेश कुमार 'निश्छल'

संघर्ष में ही लक्ष्य और लक्ष्य में ही संघर्ष


मुझे हर कोशिश में,
मंज़िल का अक्स दिखता है।
अपने संघर्ष में ही ,
अपना लक्ष्य दिखता है।।

संघर्ष क्या है,
टूटकर बिखरने से पहले,
चटकना ज़रूरी है।
हो तलाश मुकम्मल ख़्वाब की,
तो भटकना जरूरी है।।
क्योंकि _
जीत के खेल में हर पत्ता,
मनमाफिक नहीं होता।
और _ कई चालो के बाद भी मिला तजुर्बा,
जीत से वाकिफ़ नहीं होता।।

वैसे_ जीत की हर किताब में,
कहानी जद्दोज़हद (संघर्ष) की होती हैं ......
कहानी ..
गिरने की होती हैं,उठने की होती है।
तनाव की होती हैं, बहाव की होती हैं।
लड़ने की होती हैं, बढ़ने की होती हैं ।
आंसुओं की होती हैं,
मुस्कुराहटो की होती हैं।

जीत की हर किताब में,
कहानी जद्दोज़हद (संघर्ष) की होती हैं ।।

मकसद (लक्ष्य) क्या है,
मकसद _ ख्वाब है, इबादत है,सुरूर हैं
ज़ज्बा,हौसला और गुरूर हैं।
मकसद _ तपते रास्ते का सुकून है,
और _ बारहो महीने ये मई और जून है।

जब मोहब्बत अपनी मेहनत से ,
और पसीने से प्यार हो जाए।
हर हालात में, दर्द में, जज्बात में,
मुस्कुराहट शुमार हो जाए।।
तो समझ लेना,
आने वाली जीत को जीने लगे हो तुम।
और, उम्मीद के कपड़े पर,
कोशिशों के धागे से अपना मकसद सीने लगे हो तुम।।


एक प्रयास _ रितेश कुमार 'निश्छल'

Thursday, October 8, 2015




कैसा होता है बदलो के ऊपर का समां    
आओ, ........    देखे ऊपर से आसमां
खुद को इतनी ऊंचाई पर पाकर ,
सोचो न कैसा लगता होगा इतने ऊपर आकर। 
हल्की ठंडी सी हवाएँ छू लेती हैं तन को मन को,
ताजुब होगा गर मैं कहूँ,.....
हमने इस अहसास को जमीं पर रहकर जिया हैं,
जिंदगी में एक बार ऐसा तो कुछ किया हैं। 
ये किसी सपने में उड़ान की बात नहीं,..
एक अलग पहचान छिपी है हममे ही कही,... 
जिंदगी में जब भी हमने किसी सपने को सच में जिया है, 
तो उस लम्हे में खुद को आसमां से भी ऊपर किया है। 
चलो न ऐसी कई उड़ाने भरते है. 
बदलो को अपने कदमो के नीचे करते हैं। . .  
उन ठंडी मर्म हवाओ के अहसास में जीते है 
अपने जीत के पंखो को मजबूती से सीते हैं 

चलो न और सपनो के अम्बार लगाते  हैं। 
और हर जीत के बाद, … 
इन बदलो के,इस आसमां के और-और पार जाते हैं  

चलो न ऐसी कई उड़ाने भरते है. 
बदलो को अपने कदमो के नीचे करते हैं। . . 




                                                                                                                                     चित्र - गूगल से। 

Wednesday, October 7, 2015

खुद से कहना मजबूत रहना। .





   These Lines are Inspired By The Efforts of my M.D Sir (Hats Off Sir)



खुद से कहना मजबूत रहना। .

हर रास्ता थोड़ा सताएगा , पसीने से जब ये चेहरा नहायेगा।
सूखी धरती पर जब बूंदे बटोरेंगे , सोचो ये तजुर्बा क्या कहलायेगा। 
ख़्वाहिशों का समंदर भी होगा , जो चाहेंगे वो पूरा भी होगा। 
आओ सब्र की खूंटी से बंध जाये , गर्दिशों में जीत के गीत गुनगुनाये। 

अपने हर दर्द को भूल जाने का इल्म दे ,
आओ अपनी जिंदगी को हंसी-ख़ुशी वाली फिल्म दें। 

Sunday, September 27, 2015

विश्वास पर विश्वास हैं ना...?

आज से कुछ दिन पहले जब मैं थोड़ा असमंजस में था। तब अचानक एक बेहतरीन किताब कि कुछ पंक्तियाँ दिमाग में सरपट दौड़ने लगी की "आप जितने भी बुरे दौर से गुज़र रहे हो कुछ भी आपके मुताबिक न घट रहा हो,ऐसा लग रहा हो कि परिस्थितियां हाथ से फिसलती जा रही हैं।   इन सब हालातो के बावजूद एक चीज़ आपके पक्ष में हमेशा रहती है कि  'आप जिन्दा है अपने हाथ से फिसलते हुए उन हालातो को थामने  के लिए ,आपका वजूद है बुरे से बुरे हालातो में भी मुस्कुराने के लिए और हमारे जिस्म में हमारी रूह का होना इस बात क सबूत है के एक बार फिर खुद पर विश्वास करके हम कैसे भी हालात बदल सकते है।" दिमाग की नसों में याद बनकर ये मजबूत सोच चल रही थी।  

अचानक मैं इन सब बातो से बाहर आया और खुद से कहा कि  हमारी जिंदगी का हमारे साथ होना एक बेहतर बात है लेकिन क्या विश्वास के बिना जिंदगी का महत्व है? क्या विश्वास ऐसा संदूक है जिसमे हर मुश्किलो से निकलने के रास्ते बंद है? 
तो बस फिर बिना समय गवाएं मैंने ये फैसला लिया की अपनी इस स्थिति को और इनसे जुड़े सवालो को आपके साथ साझा किया जाये और आपके साथ मिलकर  कोशिश की जाये हमारे अंदर छिपे विश्वास को  समझने की ।

तो चलिए शुरू करते है तब से जब से हममे सोच का बीज़ अंकुरित हुआ  । कुछ याद है धुंधला सा.. ...जब  हम गिर-गिर कर चलने की कोशिश कर रहे थे।  तब माँ ने अपनी दोनों हाथो की एक-एक उंगलियां हमारे दोनों छोटे-छोटे हाथो में थमा  दी और उसके सहारे हम कुछ   दूर चल पाये फिर माँ ने  हमें छोड़ दिया और पूरी उम्मीद से हमें अपनी ओऱ इशारा करके बुलाने लगी।  याद हैं जब पापा के साथ सड़क पर साइकिल सीख रहे थे और  पापा पीछे से साइकिल का केरियल थामे हुए थे  और हम बार-बार पीछे मुड़कर देख रहे थे तब  उन्होंने हमारे      कंधे पर हाथ रखकर कहा 'आगे देखो  मैं हूँ न'।  याद है आपको  जब हम पहली बार किसी कम्पटीशन में हिस्सा ले रहे थे और आप अपनी बारी का इंतज़ार  करते हुए अपनी हथेलियों पर जो  पसीना आ  रहा था उसे पोछते हुए खुद से कह रहे थे के मैं कर सकती हूँ या मैं कर लूंगा।  जिन हिस्सों का यहां जिक्र हुआ है वो हमारी जिंदगी की शुरूआती दौर की यादे हैं। अपने माता - पिता  के इस विश्वास के रिफ्लेक्शन से हम प्रेरित हुए और तब हममे अपने प्रति विश्वास जाग रहा था और जब किसी कम्पटीशन में अपने हथेलिओं के पसीने को पोछते हुए खुद को समझा रहे थे तब हम अपने विश्वास को बढ़ावा देकर अपनी जीत सुनिश्चित कर रहे थे। तो जाते हुए समय और बढ़ती हुई उम्र के साथ विश्वास का प्रकाश अंधकार में क्यों खोने लगता है। 
अगर हम इस बात के तर्क को स्वामी विवेकानंद जी के शब्दो में समझे तो वे कहते है कि "यदि स्वयं में विश्वास करना और  अधिक विस्तार से पढ़ाया और अभ्यास कराया गया होता,तो मुझे यकीन है कि  बुराइयों और दुःख एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।" ये तथ्य जितना भव्य है  ये उतना ही अंदरुनी सत्य है। वैसे काफी  बार विश्वास का एक पक्ष इस तरह से भी सामने आया है कि  -विश्वास की नींव अविश्वास से शुरू होती है  और कई लोगो की भीड़  में जो  एक व्यक्ति निराधार बात करता है यानि दूसरो की नजरो में जो अविश्वसनीय होता है और जब वही अविश्वास अपने सकारात्मक परिणाम की विजय पताका फहराता है तो विश्वास जन्म लेता है और हमारे अंदर का विश्वास अगर हमें दोबारा पाना हो तो ज्यादा कुछ नहीं इस बार अपनी दोनों हाथो की एक-एक उंगलियाँ अपने माँ के हाथो में थमा देना तब उनकी आँखों में जो चमक होगी वो हमारा खोया हुआ  विश्वास है और अब अगर विश्वास को मजबूती देनी हो तो फिर एक बार हमें अपने पिता के उन ऊँचे कंधो को देख लेना चाहिए जो हमारी वजह से हमेशा हिमालय की तरह अडिग है। बस हो गया जादू जो किसी भी चमत्कार पर भारी  पड़ने वाला हैं।   
अब बात करे अगर सांसारिक यानि बाहरी जादू या चमत्कार की तो वैसा कुछ होता ही नहीं हैं ।  हमारे खुद 
पर किये गए विश्वास के बाद हमारे द्वारा किए गए प्रयासों का परिणाम ही दूसरो को जादू या चमत्कार लग सकते हैं।  विश्वास को हमेशा  एक नयी खोज का ,एक नए मकसद का आधार चाहिए होता हैं। क्यूंकि जिंदगी में अगर मकसद नहीं तो विश्वास के टिकने का आधार भी नहीं।तो हम अपने अंदर भी विश्वास को महसूस कर सकते है उसे एक मजबूत जगह दे सकते है। 
उम्मीद है हमें विश्वास को लेकर खुद में कुछ बेहतर महसूस हुआ होगा। फ़िलहाल जाते-जाते कुछ शब्द हम सबके लिए - "हमारी जिंदगी से जुड़े बहुत से ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब  हमारे पास नहीं है और वो जवाब इसलिए भी हमारे पास नहीं हैं क्यूंकि हम उन्हें खोजते ही नहीं। "
  

















     

Friday, September 25, 2015


         याद है वो बारिश............................................  


         

Thursday, September 24, 2015

सोच (Thought)

जिस तरह दिशा न पता होने पर सूर्य का उदय होना और अस्त होना लगभग बराबर दिखता है। उसी तरह बिना योज़ना के भी चलते रहना आपको इस सत्य से दूर रखेगा की आपके जीवन का उदय होगा या अस्त। --- 

                                                                                                                                  सोच - रितेश निश्छल 

     
                                                                                          



                                                                                                                            Picture By - Google 

Sunday, September 20, 2015

घरौंदा ...




चलो सपनो का अपना एक घरौंदा बनाते हैं 

उसे तिनको से ही सही... लेकिन अपने मनमाफिक सजाते है 
चलो सपनो का अपना एक घरौंदा बनाते हैं। …

उम्मीद का दिया हर कोने में जलाते है.. 
आओ घर अपने खुशियों को बुलाते है  …

चलो सपनो का अपना एक घरौंदा बनाते हैं। …

एक टुकड़ा जमीन का हो और छत वाला आसमान 
दीवारो से दिल की बात हो.. और हर चौखट करे पूरे अरमान।।


जिस तरह ये परिंदे अपना हौसला दिखाते है। …
 चलो न सपनो का अपना एक घरौंदा बनाते हैं।





















                                                                                                                     Pictures By - Goggle