Saturday, August 10, 2013

मेरे खुद को लिए- Happy Daughter's Day....

कोई शब्द नहीं …कोई बात नहीं …कोई वजह नहीं…कोई ज़ज्बात नहीं
बस उस बच्चे की प्यार भरी आँखों ऩे ,एक अनोखा रिश्ता बना दिया,
जिस रिश्ते का कोई नाम नहीं ….जिसका कोई मुकाम नहीं।,,
बस उस रिश्ते में बसा ढेर सारा प्यार और अपनापन,
 
 
मैं पिता नहीं बस उसने , वैसा अहसास दिलाया।
वो मेरी बेटी नहीं पर उसने मुझसे दुलार पाया ,
 
उसकी ढेर सारी फ़िक्र और
अब हर बात में उसका जिक्र।
 
 
बस ये दिन मेरे लिए वक़्त से पहले जरुरी हो गया,
Daughter's Day..............
किस्मत और वक़्त ने उसे कुछ ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा किया। ….
जहाँ वो अपने परिवार के साथ एक नई लड़ाई के लिए तैयार हैं। …
.
उसे पहले भी दुनिया की फिक्र नहीं थी ….
और आज भी नहीं है,
 
 
जब मैं उससे पहली बार मिला,
तब एक मजबूत ज़ज्बात … कुछ कर गुजरने का,
और अपने आसमा में.…. खुलकर उड़ने का ,
उसका सपना, उसकी सोच उसके अन्दर का वो तूफ़ान,
आज भी उसमे है और वो हमेशा रहेगा।
 
वो कभी थमेगी नहीं वो कभी रुकेगी नहीं। ……
वक़्त उसे हमेशा आज़माने को तैयार है और वो आज़माइश को.।
कड़ी चुनौती और बेपरवाह परेशानियां ,
 
वक़्त बेवक्त हर वक़्त वो तैयार हैं.…
 
परखा है मैंने उसे हर मौसम में ,
देखा है मैंने उसे हर दौर..
 
ज़िद्दी बहुत है वो हार नहीं मानेगी। ….
भले वक़्त और हालात जीत जायें। … 
पर वो हथियार नहीं डालेगी। ….
 
मेरी उस ईश्वर से सदा ये इच्छा रही है
अगर हो तो ऐसी हो बेटी मेरी …।
 
उस ईश्वर ने बेटी स्वरुप मुझे उपहार मेंउसका प्रतिरूप दिया। …….
मैं उस ईश्वर का कोटि कोटि धन्यवाद करता हूँ।
 
वो आज मेरे आस-पास है इसलिए किसी को नहीं खुद को लिए -
 
 
Happy Daughter's Day....
और उस बच्चे को …. Thanks For Come To My Life.




                                                                                              By-Ritesh Nischhal

 

Saturday, August 3, 2013

वो एक लड़ी शब्दों की और एक नज़रिया


Attitude यानि नज़रिया बचपन से बड़े होते हुए इस शब्द को कई बार सुना, कई बार बोला , कई बार लिखा
लेकिन हम इस शब्द को समझने में और खुद में अपनाने में अपनी जिंदगी का काफी बड़ा हिस्सा
या कहे पूरी जिंदगी लगा देते हैं।
...या फिर कोई एक ऐसी घटना जो हमारी सोच के तरीके को हर तरीक़े से बदल देती है जैसे शर्मन जोशी 3 idiots मूवी के इंटरव्यू सीन में कहते  है- अपनी दोनों टाँगे तुड़वाने के बाद अपने पैरो पर खड़ा होना सीखा है…आप अपनी नौकरी रख लीजिये मैं अपना  Attitude रख लेता हूँ "… इस तरह के नज़रिए के बारे में बात करना और ऐसा नजरिया खुद में होना काफी अलग बात है
 फ़िलहाल बीते दिनों में मेरे साथ कुछ ऐसा जरुर हुआ जिसने मेरे खुद के नज़रिए पर कुछ फ़र्क जरुर डाला - जब मुझे मेरी छोटी बहन ने एक Quotation देते हुए उसका मतलब जानने को कुछ नया लिख कर देने को कहा लेकिन इसके बाद जो हुआ वो थोड़ा  रोचक था।
तो ये रही वो एक लाइन -"सपनो से ,लोगो से और सुदूर स्थानों से मिलने को बेताब रहो ,क्यूंकि ये जिंदगी बहुत लम्बी है ''- ..ये शब्द किस शक्सियत के माध्यम से कहे गये हैं ये मैं आपको आखिर में बताऊंगा।

मैंने इन शब्दों को पढ़ते ही हर शब्द को समझकर अपने जेहन में उतरने की पूरी कोशिश की ताकि जो  उम्मीद मेरी छोटी बहन ने मुझसे बाँधी वो बनी रहे …सो उस कोशिश के कुछ अंश आपसे बांटते हुए उस रोचक नजरिए के अंत तक पहुचेंगे हम…तो ये रहे कुछ अंश -

-"सपनो से ,लोगो से और सुदूर स्थानों से मिलने को बेताब रहो ,क्यूंकि ये जिंदगी बहुत लम्बी है ''………

सचमुच इन शब्दों को लिखने वाले शख्स का हाथ चूमने को दिल करता है क्यूंकि इन शब्दों में जिंदगी जीने की तकनीक लिखी हुई है …वास्तव में ये जिंदगी बहुत लम्बी है क्यूंकि सपनो से ,लोगो से  और सुदूर स्थानों से मिलने की बेताबी दिखाए बिना ये जिंदगी नीरस (बोर),खाली-खाली और खिंची हुई सी और लम्बी सी महसूस होने लगेगी।
एक ऐसी जिंदगी जिसमे कोई उत्साह ,चुनौती और हारने के बाद सीखने की तड़प नहीं होगी ,जीत की खुशबू के साथ मेहनत का सौंधापन नहीं होगा। जिद होगी पर उसमे मजबूत ज़ज्बात  नहीं होंगे और सबसे बड़ी बात -"जिंदगी को जीने का एक सही नज़रिया नहीं होगा "…. तो इस तरह से इन शब्दों को लिखने वाले के नजरिये  से -सपने,लोग और सुदूर स्थानों को अपनाये बिना इनसे मिले बिना ये जिंदगी उबासी भरती हुई बहुत  लम्बी हैं।

(वैसे इस लाइन को एक बार पढ़ने पर लगता है की लिखने वाले ने जिंदगी को लम्बी बताकर हमारे ऊपर एक टोंट कसा है जैसे वो हमें चिढ़ा रहे हो की ये सब बाते बहुत ज़रूरी है लेकिन तुम जैसे आलसी के लिए नहीं जो बिना कुछ किए अपनी जिंदगी खींच कर लम्बी कर रहा है।लेकिन फिर अगले पल ये लगता है की उन्हें ये तो पता है कि हमारे पास जिंदगी के 40-50-60 साल तो है तो क्यूँ ना इस लम्बी जिंदगी को प्लान करके जिया जाये। )

फ़िलहाल लिखने वाले ने अपने लिखे हुए इस एक वाक्य के हर शब्द में एक ख़जाना छिपा रक्खा हैं ऐसा मुझे लगा तो उसे टटोलने की  कोशिश आपके सामने आगे की कुछ लाइन्स में हैं-

सपनो से --लिखने वाले शख्स ने अपने लिखे हुए शब्दो  में सबसे पहले 'सपने' को जगह दी…. जो एक सच को दर्शाता है कि  आपकी जिन्दगी की गाड़ी की रफ़्तार और सही मंजिल …  आपके सपनो के मजबूत ईंधन पर निर्भर करता है। ये स्पष्ट  है  कि  सपने आपके जूनून पर और आपका जूनून उन्हें पाने की बेताबी पर निर्भर करता है  ये सपने ही है जो हमे अपने आप से मिलते है क्यूंकि ये हमारे अपने सपने होते है।  

लोगो से--इस शब्द का आस्तित्व हमारे जीवन में इतना है कि  हमारे जन्म से,हमारे पूरे जीवन का आधार बन कर और हमारी मृत्यु तक ये (लोग ) हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अभिन्न हिस्सा बने



रहते है,यकीनन ये बहुत रोचक है लेकिन कई बार या कहिये हर बार हम सपने इन्ही अपनों के लिए देखते है  या  हम जिन्हें अपना बना लेते है  इनमे से कुछ रिश्ते ऐसे बन जाते  या कहे हम उसमे ऐसे मिल जाते है जिनके लिए कुछ भी कर गुजरने की बेताबी हमारी आखिरी सांस तक बनी रहती है निश्चित तौर पर हम इन्ही लोगो के लिए अपनी इस जिंदगी को गुजारते हुए अपना वजूद कायम  रख पाते है।

अगर सच कहूँ  तो ऐसा कुछ लिखते हुए बहुत बेहतर महसूस हो रहा है मुझे लेकिन खुद के जीवन में सपनो का और लोगो का महत्व जानने और समझने के बाद, ये हमारे जीवन जीने के तरीके और हमारे नज़रिये  के नज़रिये पर खासा असर छोड़ जाती है … लेकिन इस लाइन को लिखने वाले बेहतरीन शख्स ने मुझे थोडा तब उलझा दिया जब उन्होंने अपने इन शब्दों के झुण्ड में सुदूर स्थानों का जिक्र किया क्यूंकि सपनो से और लोगो से मिलने की बेताबी तो समझ सकते है।  फिर भी मैंने इसे शब्द को  लिखने वाले के  नज़रिये  से इसे समझने की थोड़ी कोशिश जरुर की-

सुदूर स्थानों से --लिखने वाले के नज़रिये से हमारे पास सपने है ,उत्साह देने वाले,साथ चलने
 वाले और चुनौती देने वाले लोग है तो अब बचती है जीवन को सार्थक करने वाली एक बड़ी सफलता  ,तो सुदूर
स्थानों का एक बड़ी सफलता मिलने से क्या महत्व है ,तो इस बात को समझने के लिए मैंने एक बात समझी ….



कि… "एक लहलहाता हुआ सरसों का खेत तभी ज्यादा लुभावना लगता है ,जब वो कई एकड़ जमीन में फैला हो । ". इन लिखे हुए शब्दों को समझना उतना मजेदार नहीं जितना वास्तव में इस द्रश्य को देखते हुए जो आप अनुभव कर पाएंगे तो यहाँ  उस पंक्ति को लिखने वाले श्रीमान का कहना थोड़ा  स्पष्ट हो जाता है कि सफलता को फैलाव चाहिए। सिमटी हुई जगह पर की गई कोशिश से सिमटी हुई तरक्की मिलती है यहाँ एक तर्क और स्पष्ट

होता हुआ नजर आता है की जब हम सुदूर स्थानों पर अपनी चाहत और सपनो की खुशबू लेकर पहुंचते है तो वहाँ  के लोगो की, संस्कृति की ,उनके विचारो की और जीवन के नये अनुभव की ख़ुशबू लेकर वापस आते है,यहाँ  एक बात स्पष्ट हुई की हर सुदूर स्थान  हमें जिंदगी को हर बार एक नए नज़रिये से देखने का ,सीखने का मौका देता है जिससे हमारी आने वाली सफ़लता को एक नया नज़रिया और एक नया आयाम मिलता हैं।




जिंदगी में जल्दबाजी हो अपने अधूरे काम और नायब सपनो को पूरा करने के लिए ।
जिंदगी में आराम हो अपने चहेतो और आदर्श लोगो के साथ समय बिताने और सीखने के लिए ।
इस लंम्बी सी जिंदगी को हम कैसे जीना चाहते है ये हम तय करते है क्यूंकि ये  जिंदगी हमारी ,टाइम हमारा और मुस्कराहट भी हमारी …

इसलिए बेताब रहे …उन अनकहे अनसुने अनछुए अद् भुत "सपनो " तक पहुचने के लिए …।
इसलिए बेताब रहे …उन लोगो से मिलने को.… उनमे समाने को जिनके लिए आप जीते है और मिट जाते है,जो जरिया बन जाते है जाने-अनजाने आपके उस मुकाम तक पहुचने का जहाँ आपके मजबूत ज़ज्बात ठहरते है।
इसलिए बेताब रहे है… उन सुदूर स्थानों  को जानने -अपनाने को जो आपके व्यक्तित्व और नज़रिये को नए आयाम दे। क्यूंकि ये जिंदगी हर पल में हर लम्हें में बहुत  लम्बी है।  
................................................




तो इस तरह मैंने अपने इस लेख का समापन किया और उस एक लाइन को खुद से खुद के लिए समझने की कोशिश कि ताकि मैं भी अपने जीवन जीने के तरीके में थोड़ा बदलाव ला पाऊ जैसा की वो श्रीमान कहना चाहते थे और इसके माध्यम से मैं अपनी छोटी बहन के मन में चल रहे प्रश्नों के के उत्तर देने में थोड़ा बहुत कामयाब रहा ऐसा इस लेख को पढ़ने के बाद उसके चेहरे पर चल रहे भावों में से मैं भांप  पाया। ……
लेकिन कुछ महीनो बाद मेरी छोटी बहन थोड़ी असमंजस की स्थिति मेरे पास आई और बोली कि भैया एक छोटी सी मिस्टेक हो गई है वो न जो मैंने आपको Quotation दी थी वो न थोड़ी सी चेंज है बस थोड़ी सी…उसकी इतनी सी बात से मेरी भौहें थोड़ी चढ़ गई । मैंने पूछा क्या …उसने कहा -- जब मैंने वो  पढ़ा और जिस काग़ज पर ये लिखा था वो मुझसे मिस हो गया था ये लाइन मेरे माइंड  में थी और कई दिनों से आपसे पूछना चाह रही थी लेकिन जब मैंने आपको लिख कर दिया तो थोड़ी Confusion हो गई….
मैंने प्यार से पुछा - क्या बेटा
उसने कहा - -"सपनो से ,लोगो से और सुदूर स्थानों से मिलने को बेताब रहो ,क्यूंकि ये जिंदगी बहुत छोटी  है "….
फिर मैं कुछ देर तक उसे देखता रह गया कुछ देर बाद मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ की मैंने बिना जाँचे-परखे इस तथ्य पर एक आर्टिकल लिख डाला। …इसके सुधार के लिए तुरंत मैंने अपनी  खोज शुरू कर दी-और रिजल्ट कुछ समय में मिल गया- इसे लिखने वाले राइटर डेविड एस्सेल है जिनका नाम मुझे  Northern Exposure writers …
की लिस्ट में दिखा जिन्होंने इंग्लिश में ये तथ्य दिया था जो न जाने मेरी बहन को कहाँ  से मिला -वो लाइन्स ये थी। …
Be open to your dreams, people. Embrace that distant shore. Because our mortal journey is over all too soon.
- David Assael, Northern Exposure, It Happened in Juneau, 1992 .
इन शब्दों का काफी हद तक वही अर्थ है जो मेरी छोटी बहन ने मुझे दिया बस उसने जिंदगी को लम्बा कर दिया  ……
इस छोटे से हादसे ने मुझे एक बहुत बड़ी बात सिखाई कि  कोई बात किस तरह से कही गई ये उतना माएने फिर भी नहीं रखती जितना ये कि  हम उस बात को खुद में कैसे ढाल पा रहे है या हमारा नज़रिया उस बात को समझने या अपनाने का कैसा है …
कही हुई या सुनी हुई बात गलत हो सकती है लेकिन हमारा सकारात्मक रवैया उस बात में भी अपने लिए बहुमूल्य ख़जाना ज़रूर दूंढ़ लेगा।

ये मेरी खुद पर बीती एक ऐसी आप बीती है जिसने मेरे नज़रिये को एक नया नज़रिया दिया और आपके?   
                                                                                              

                                                                                                      केवल एक प्रयास - रितेश निश्छल 
                                          


Saturday, July 13, 2013

मैं राम....मैं रावण

                                                          

Shri Ram

क्या हमारे किसी अच्छे या बुरे परिवार में जन्म लेने से इस बात का पक्ष मजबूत होता हैं की हमारा भविष्य ,चरित्र और कर्म बेहतर होंगे या नही ..आप भी इस बात से ज़रुर इत्तेफ़ाक रक्खेंगे कि हम कब- कहाँ और किस तरह अपने बेहतर इरादों से ऊचाइंयों की मंजिल तक पहुँचते हैं और कब वो एक स्टेप...वो एक स्टेप हमे हमारी दुनिया से मीलो दूर फेंक देता हैं जहाँ नाम- शोहरत और हमारी अच्छाई धूमिल हो जाती हैं और रह जाता हैं केवल बदनाम ..'नाम'.

Rawan
जो नाम कभी आसमान में झिलमिलाते तारो के बीच ध्रुव तारा था वो स्वाति नक्षत्र की वो बूंद बन गया जो सीप में पड़ कर मोती तो नहीं बना और ही उन शुभ केले के पत्तो में छिपकर कपूर बन पाया उसने चुना लालच -अहम् - घमंड और 'मैं' का वर्चस्व थामे उस सर्प के मुख को जहाँ वो विष बन गया ..जिसने उसके ही जीवन में घुलकर उसके भविष्य का विनाश कर दिया।

ये बात कितनी सही है इसे टटोलने के लिये चलिए आज थोड़ा सा आध्यात्मिक हो जाते है ..मैं बात करु अगर बीते युगों की जहाँ मर्यादा पुरुषोतम श्री राम हो या प्रकाण्ड पंडित रावण या फिर मनमोहक मुस्कान लिए श्री कृष्ण या मैं के अहम् से परिपूर्ण कंस ..ये सभी अपने -अपने युगों में अपने कर्मो और लक्षणो से जाने जाते है। अब मैं इतना सक्षम नहीं की इस महान विषय पर समीक्षा कर सकूं लेकिन हाँ दिमाग में गुलाटी मारते विचारो को आपसे जरुर बाटूंगा। .........

इस कलियुग में राम बनना आसान हैं या रावण बनना..तो दिमाग में चल रही इस गुत्थी का दूसरा प्रारूप ये है की सही करना सही हैं या गलत करना आसान तो इस वक़्त हम जिस युग में है वहाँ कुछ का मानना "कुछ करना" सबसे बेहतर माना जाता है। अगर आज के कलियुग के भक्त या भक्षक की बात करूं तो ऐसे कई बड़े नाम हैं जिन्होंने खूब मेहनत (तप) कर खुद को ऊंचाइयों और शोहरत के मुकाम पर पहुँचाया।फिर अचानक उनका एक फैसला वो एक गलत कदम उनकी आने वाली पूरी जिंदगी पर भारी पड़ गया।..अब चाहे वो खिलाड़ी -अन्तराष्ट्रीय धावक ऑस्कर पिस्टोरियस हो जिहोने विकलांग होते हुए भी खुद को एक तेज़ धावक सिद्ध किया या फिर क्रिकेट खिलाडी एस.श्रीसंत हो जिनकी उड़ान को पूरा आकाश बाकी था या फिर अपने करियर के उतार-चढ़ाव भरे जीवन के वर्तमान समय के सबसे बेहतरीन समय में जीवन जी रहे संजय दत्त हो।

इनको इनकी कड़ी मेहनत -कठिन तप मिला वरदान कहीं कहीं इनके अन्दर बसे श्री राम ने इन्हें दिया।जाने-अनजाने लेकिन थोड़ी सी खुद से लपरवाही ,थोड़ा अभिमान-थोड़ा लालच और अहम् को बढ़ाते हुए 'मैं' ने रावण का वर्चस्व बनाये रक्खा। .. एक अहम् सवाल ? - क्या इस युग का रावण बीते युग के श्री राम से ज्यादा शक्तिशाली हैं या फिर उसकी तैयारी पहले से ज्यादा मजबूत है। ..या एक सच - रावण को हमने शक्ति प्रदान की और उसने खुद को हमारे अंदर जिन्दा रखने के लिए- हमारे आस-पास के हालात का भरपूर फ़ायदा उठाया और अपने जैसे कई रावणो की उत्पत्ति कर डाली ..इसका सबसे बड़ा उदाहरण

19 वीं-20 वीं शताब्दी के महानयाक-विलेन अडोल्फ़ हिटलर रहे ..एक अन्तराष्ट्रीय चैनल ने जब इनकी विस्तृत बायोग्राफी दिखाई तो इनके जीवन के कुछ अंश जानकर काफी से ज्य़ादा हैरानी हुई।
Adolf Hitlar

उस चैनल के शोध के अनुसार बचपन में हिटलर पादरी बनना चाहते थे और बाद में उनके अंदर एक बेहतर चित्रकार ने भी जन्म लिया लेकिन उनके पिता की जिद और कड़े व्यवहार बुरे बर्ताव ने उनके अंदर पनप रही बेहतरी को ख़त्म कर दिया।इनकी माता जी की बीमारी ठीक ना हो पाई और उनका देहांत हो गया,उनका इलाज़ एक यहूदी डॉक्टर कर रहे थे इसके अलावा इनकी चित्रकारी को नकारने वाले भी एक यहूदी टीचर थे।हिटलर के उस छोटी उम्र के मस्तिष्क पर इन दोनों घटनाओं का काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा इन दो घटनाओं ने इनके अंदर यहूदियों प्रति घ्रणा का जबरदस्त सैलाब उमड़ा दिया।लगभग इन सभी कारणों ने

जन्म दिया 19वीं-20वीं शताब्दी के विद्वान रावण को .. जिन्हें परिस्तिथियों ने राम से रावण बना दिया।जो व्यक्ति एक विनर्म पादरी बन लोगो पर ज्ञान की बारिश कर सकता था बेहतरीन चित्रकार बन कई जिंदगियो में रंग भर सकता था वह दुसरे विश्वयुद्ध का प्रमुख संचालक बना।..ख़ैर इस शोध के बाद बाकि ये मेरे अपने विचार जो मैंने आपसे कहे, हालत अच्छे से अच्छे इन्सान की गाड़ी पटरी से उतारने में सक्षम है और कई विरले ऐसे भी होते हैं जो हालत को दरकिनार कर अपनी जिंदगी की गाड़ी दिशा और दशा दोनों बेहतर अपने दम पर करते हैं, आप और मैं हालात से हार सकते हैं और उसे हरा भी सकते हैं। उस ईश्वर का कोई रूप नही बस हमीं ने उन्हें अलग -अलग नाम देकर खुद में बसा रक्खा हैं।बस जरुरत है खुद के अंदर बसे उस ईश्वर पर विश्वास करने की ऐसा हमसे हमारे बड़े हमेशा कहते हैं क्यूंकि उनका तजुर्बा हमारी जिंदगी की इमारत को मजबूती देता है।सो मुस्कुराते हुए लड़ाई जारी रखिये। 

                                                 

                                                  एक प्रयास - रितेश कुमार "निश्छल"

       




मैं हूं एक फूलवाली


फूलवाली 
                                                मैं हूं एक फूलवाली, और फूलों का कारोबार है मेरा,
         ये टोकरी है दुकान मेरी और हर फुटपाथ पर मेरा डेरा।
 
 
काम तो मेरा छोटा है, पर अरमान छोटे नहीं,
                         इन फूलों की तरह बिखरी हूं, बस मैं यहीं कहीं।
  हर कोई मुझे हर वक्त छोटा आंकता  रहता है,
                          पर मेरे सपनो के झरोखे से कोई झांकता रहता है ।
 
 
               हम जिन्दगी में अपनी बहुत कुछ में सबकुछ करना चाहते हैं,
            पर शुरूआत कुछ से होती, बस यही भूल जाते हैं।
              ये फूल बेच बेच कर जो कुछ कर पाती हूं,
            बस इस कुछ से ही, परिवार के दिल में बस पाती  हूं।
 

            
 जरूरत और अरमानों में एक जंग सी छिड़ी है,
                    पर अरमानों के आगे, जरूरत की दीवार जो खड़ी है।
जरूरत की ये समस्या सचमुच काफी बड़ी है,
                  अब अरमानों की पोटली न जाने कहां पड़ी है।।
           
मेरे दिल के दरवाज़े पर उम्मीद की खट -खट है,
                    पर इस जिंदगी में तो काफी से ज्यादा खट -पट है।
           एक विश्वास है  सहारा मेरा ,मैं कुछ अलग कर पाऊँगी ,
                          रोने-धोने में क्या रक्खा है ,हर कोशिश पर मैं मुस्कुराऊँगी।। 
 

                 मैं हूं एक फूलवाली, और फूलों का कारोबार है मेरा,
             ये टोकरी है दुकान मेरी और हर फुटपाथ पर मेरा डेरा।
 
 
                                                                                 
 
                                                                                                     कोशिश - रितेश निश्छल 
 

Monday, June 3, 2013

जब भी मैं निःशब्द हूं होता....

Nishabd....???

                                                       जब भी मैं निःशब्द हूं होता।

                                                       भावहीन जब ह्रदय है होता,
                                                         सागर में खोते से विचार,
                                                                     और
                                                       संदिग्ध हर विषय है होता।।

                                                      जब भी मैं निःशब्द हूं होता।।

                                                      मस्ष्तिक पर विजय हो कैसे,
                                                     और प्राप्त लक्ष्य हो जैसे तैसे।
                                                     मन बस विचारों को गति देता,

                                                       जब भी मैं निःशब्द हूं होता।

                                                    हर क्रियाकलाप एक हलचल मात्र,
                                                         मैं नदी सा विचलित पात्र।
                                                    हो दिशाहीन बस कलकल बहता,

                                                       जब भी मैं निःशब्द हूं होता।।

                                                  कभी मैं पुष्प भांति खिला तो सही,
                                                महककर महकाने की इच्छा बस रही।
                                                 मुरझाकर यथावत महकता मैं रहता,

                                                     जब भी मैं निःशब्द हूं होता।

                                                निःशब्दता असहाय का प्रमाण नहीं,
                                                   प्रयास है मौन से विजय सही।
                                              इस तरह सर्तक साधक सा लक्ष्य में खोता।

                                                    जब भी मैं निःशब्द हूं होता।।

                                                    एक कवि का चल अचल मन,
                                                       मैं अक्षर सा निश्चल बन।
                                                         शब्दों को अंधेरे में टोता,

                                                     जब भी मैं निःशब्द हूं होता।

                                                      सरस्वती चरणों का सेवक,
                                                      आर्शीवाद मिले मनमोहक।
                                                सुनता इनकी स्तुति मैं बनकर श्रोता।......
 
 
                                                      जब भी मैं निःशब्द हूं होता।।


   Written Date: - March.2010                                                           W..By- Ritesh Nischal