Thursday, October 8, 2015




कैसा होता है बदलो के ऊपर का समां    
आओ, ........    देखे ऊपर से आसमां
खुद को इतनी ऊंचाई पर पाकर ,
सोचो न कैसा लगता होगा इतने ऊपर आकर। 
हल्की ठंडी सी हवाएँ छू लेती हैं तन को मन को,
ताजुब होगा गर मैं कहूँ,.....
हमने इस अहसास को जमीं पर रहकर जिया हैं,
जिंदगी में एक बार ऐसा तो कुछ किया हैं। 
ये किसी सपने में उड़ान की बात नहीं,..
एक अलग पहचान छिपी है हममे ही कही,... 
जिंदगी में जब भी हमने किसी सपने को सच में जिया है, 
तो उस लम्हे में खुद को आसमां से भी ऊपर किया है। 
चलो न ऐसी कई उड़ाने भरते है. 
बदलो को अपने कदमो के नीचे करते हैं। . .  
उन ठंडी मर्म हवाओ के अहसास में जीते है 
अपने जीत के पंखो को मजबूती से सीते हैं 

चलो न और सपनो के अम्बार लगाते  हैं। 
और हर जीत के बाद, … 
इन बदलो के,इस आसमां के और-और पार जाते हैं  

चलो न ऐसी कई उड़ाने भरते है. 
बदलो को अपने कदमो के नीचे करते हैं। . . 




                                                                                                                                     चित्र - गूगल से। 

Wednesday, October 7, 2015

खुद से कहना मजबूत रहना। .





   These Lines are Inspired By The Efforts of my M.D Sir (Hats Off Sir)



खुद से कहना मजबूत रहना। .

हर रास्ता थोड़ा सताएगा , पसीने से जब ये चेहरा नहायेगा।
सूखी धरती पर जब बूंदे बटोरेंगे , सोचो ये तजुर्बा क्या कहलायेगा। 
ख़्वाहिशों का समंदर भी होगा , जो चाहेंगे वो पूरा भी होगा। 
आओ सब्र की खूंटी से बंध जाये , गर्दिशों में जीत के गीत गुनगुनाये। 

अपने हर दर्द को भूल जाने का इल्म दे ,
आओ अपनी जिंदगी को हंसी-ख़ुशी वाली फिल्म दें। 

Sunday, September 27, 2015

विश्वास पर विश्वास हैं ना...?

आज से कुछ दिन पहले जब मैं थोड़ा असमंजस में था। तब अचानक एक बेहतरीन किताब कि कुछ पंक्तियाँ दिमाग में सरपट दौड़ने लगी की "आप जितने भी बुरे दौर से गुज़र रहे हो कुछ भी आपके मुताबिक न घट रहा हो,ऐसा लग रहा हो कि परिस्थितियां हाथ से फिसलती जा रही हैं।   इन सब हालातो के बावजूद एक चीज़ आपके पक्ष में हमेशा रहती है कि  'आप जिन्दा है अपने हाथ से फिसलते हुए उन हालातो को थामने  के लिए ,आपका वजूद है बुरे से बुरे हालातो में भी मुस्कुराने के लिए और हमारे जिस्म में हमारी रूह का होना इस बात क सबूत है के एक बार फिर खुद पर विश्वास करके हम कैसे भी हालात बदल सकते है।" दिमाग की नसों में याद बनकर ये मजबूत सोच चल रही थी।  

अचानक मैं इन सब बातो से बाहर आया और खुद से कहा कि  हमारी जिंदगी का हमारे साथ होना एक बेहतर बात है लेकिन क्या विश्वास के बिना जिंदगी का महत्व है? क्या विश्वास ऐसा संदूक है जिसमे हर मुश्किलो से निकलने के रास्ते बंद है? 
तो बस फिर बिना समय गवाएं मैंने ये फैसला लिया की अपनी इस स्थिति को और इनसे जुड़े सवालो को आपके साथ साझा किया जाये और आपके साथ मिलकर  कोशिश की जाये हमारे अंदर छिपे विश्वास को  समझने की ।

तो चलिए शुरू करते है तब से जब से हममे सोच का बीज़ अंकुरित हुआ  । कुछ याद है धुंधला सा.. ...जब  हम गिर-गिर कर चलने की कोशिश कर रहे थे।  तब माँ ने अपनी दोनों हाथो की एक-एक उंगलियां हमारे दोनों छोटे-छोटे हाथो में थमा  दी और उसके सहारे हम कुछ   दूर चल पाये फिर माँ ने  हमें छोड़ दिया और पूरी उम्मीद से हमें अपनी ओऱ इशारा करके बुलाने लगी।  याद हैं जब पापा के साथ सड़क पर साइकिल सीख रहे थे और  पापा पीछे से साइकिल का केरियल थामे हुए थे  और हम बार-बार पीछे मुड़कर देख रहे थे तब  उन्होंने हमारे      कंधे पर हाथ रखकर कहा 'आगे देखो  मैं हूँ न'।  याद है आपको  जब हम पहली बार किसी कम्पटीशन में हिस्सा ले रहे थे और आप अपनी बारी का इंतज़ार  करते हुए अपनी हथेलियों पर जो  पसीना आ  रहा था उसे पोछते हुए खुद से कह रहे थे के मैं कर सकती हूँ या मैं कर लूंगा।  जिन हिस्सों का यहां जिक्र हुआ है वो हमारी जिंदगी की शुरूआती दौर की यादे हैं। अपने माता - पिता  के इस विश्वास के रिफ्लेक्शन से हम प्रेरित हुए और तब हममे अपने प्रति विश्वास जाग रहा था और जब किसी कम्पटीशन में अपने हथेलिओं के पसीने को पोछते हुए खुद को समझा रहे थे तब हम अपने विश्वास को बढ़ावा देकर अपनी जीत सुनिश्चित कर रहे थे। तो जाते हुए समय और बढ़ती हुई उम्र के साथ विश्वास का प्रकाश अंधकार में क्यों खोने लगता है। 
अगर हम इस बात के तर्क को स्वामी विवेकानंद जी के शब्दो में समझे तो वे कहते है कि "यदि स्वयं में विश्वास करना और  अधिक विस्तार से पढ़ाया और अभ्यास कराया गया होता,तो मुझे यकीन है कि  बुराइयों और दुःख एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।" ये तथ्य जितना भव्य है  ये उतना ही अंदरुनी सत्य है। वैसे काफी  बार विश्वास का एक पक्ष इस तरह से भी सामने आया है कि  -विश्वास की नींव अविश्वास से शुरू होती है  और कई लोगो की भीड़  में जो  एक व्यक्ति निराधार बात करता है यानि दूसरो की नजरो में जो अविश्वसनीय होता है और जब वही अविश्वास अपने सकारात्मक परिणाम की विजय पताका फहराता है तो विश्वास जन्म लेता है और हमारे अंदर का विश्वास अगर हमें दोबारा पाना हो तो ज्यादा कुछ नहीं इस बार अपनी दोनों हाथो की एक-एक उंगलियाँ अपने माँ के हाथो में थमा देना तब उनकी आँखों में जो चमक होगी वो हमारा खोया हुआ  विश्वास है और अब अगर विश्वास को मजबूती देनी हो तो फिर एक बार हमें अपने पिता के उन ऊँचे कंधो को देख लेना चाहिए जो हमारी वजह से हमेशा हिमालय की तरह अडिग है। बस हो गया जादू जो किसी भी चमत्कार पर भारी  पड़ने वाला हैं।   
अब बात करे अगर सांसारिक यानि बाहरी जादू या चमत्कार की तो वैसा कुछ होता ही नहीं हैं ।  हमारे खुद 
पर किये गए विश्वास के बाद हमारे द्वारा किए गए प्रयासों का परिणाम ही दूसरो को जादू या चमत्कार लग सकते हैं।  विश्वास को हमेशा  एक नयी खोज का ,एक नए मकसद का आधार चाहिए होता हैं। क्यूंकि जिंदगी में अगर मकसद नहीं तो विश्वास के टिकने का आधार भी नहीं।तो हम अपने अंदर भी विश्वास को महसूस कर सकते है उसे एक मजबूत जगह दे सकते है। 
उम्मीद है हमें विश्वास को लेकर खुद में कुछ बेहतर महसूस हुआ होगा। फ़िलहाल जाते-जाते कुछ शब्द हम सबके लिए - "हमारी जिंदगी से जुड़े बहुत से ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब  हमारे पास नहीं है और वो जवाब इसलिए भी हमारे पास नहीं हैं क्यूंकि हम उन्हें खोजते ही नहीं। "
  

















     

Friday, September 25, 2015


         याद है वो बारिश............................................  


         

Thursday, September 24, 2015

सोच (Thought)

जिस तरह दिशा न पता होने पर सूर्य का उदय होना और अस्त होना लगभग बराबर दिखता है। उसी तरह बिना योज़ना के भी चलते रहना आपको इस सत्य से दूर रखेगा की आपके जीवन का उदय होगा या अस्त। --- 

                                                                                                                                  सोच - रितेश निश्छल 

     
                                                                                          



                                                                                                                            Picture By - Google 

Sunday, September 20, 2015

घरौंदा ...




चलो सपनो का अपना एक घरौंदा बनाते हैं 

उसे तिनको से ही सही... लेकिन अपने मनमाफिक सजाते है 
चलो सपनो का अपना एक घरौंदा बनाते हैं। …

उम्मीद का दिया हर कोने में जलाते है.. 
आओ घर अपने खुशियों को बुलाते है  …

चलो सपनो का अपना एक घरौंदा बनाते हैं। …

एक टुकड़ा जमीन का हो और छत वाला आसमान 
दीवारो से दिल की बात हो.. और हर चौखट करे पूरे अरमान।।


जिस तरह ये परिंदे अपना हौसला दिखाते है। …
 चलो न सपनो का अपना एक घरौंदा बनाते हैं।





















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Saturday, September 5, 2015

Must Read......

जय श्री कृष्णा।।   ..................

जन्माष्टमी पर विशेष। ( भगवान  श्री कृष्णां का आपके लिए सन्देश  )

प्रिय  भक्तजनो, ..

मेरा  रंग अलग मेरा ढंग अलग..
मेरा अंत अलग मेरा आरम्भ अलग।
मै सृष्टि में हूँ  और नहीं भी....
मै गलत भी हूँ मै सही भी।
मैं धैर्य हूँ मैं धारणा भी  मैं सब में स्थापित आराधना भी।
मैं क्रोधी  भी हूँ और विनम्र भी..
मै वास्तविक भी हूँ और भ्रम भी।
मैं शोध हूँ  और कर्म भी..
मैं आधा हूँ और संपूर्ण भी।

मैं रौशनी भी हूँ और अन्धकार भी..
मुझे पता है…
हर तरह  से तुम्हे ....स्वीकार भी।

इसलिए बस मैं ईश्वर नहीं।
क्यूंकि मैं  हूँ  ही  नहीं  …।...

मैं बसता हूँ तुम्हारी आस्था में...
प्यार से तुम मुझे विश्वास कहते हों।
अरे.. चल रहा मैं तुममे .. तुम  मुझे अपनी सांस कहते हो।
....
उम्मीद का ईश्वर तुम्हारे अंदर है..
इसलिए कभी तो पूरी होने वाली मुझे आस कहते हों।

                       तुम्हारा भगवान जो तुममे है... सिर्फ तुम्हारें  लिए।


…………….                         रचनाकार   ( एक प्रयास ) - रितेश निश्छल
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Monday, July 20, 2015

कुछ आँसुओ का फ़लसफ़ा - कभी नुकसान कभी नफा

                               
आप रात में अपने बिस्तर  पर सोने से पहले आँखे बंद करने के बाद  और नींद आने तक क्या सोचते है ?
आज का दिन कैसे बीता, आने वाले कल की क्या प्लानिंग होगी या मेरी जिम्मेदारियां  किस तरह पूरी होंगी ,
आप अपने बिस्तर  पर मुस्कुराते हुए सोते है या गंभीर विचारो में डूब कर ..शायद ये
सवाल घटती -बढ़ती उम्र के साथ अपने जवाब की मंज़िल तक पहुंच जाते है। हमारे हालात हम पर हर तरह से अपना असर छोड़ते है। हमारे सोने से पहले और सोने के बाद भी।
फिर अगले दिन सुबह हमें लगभग हर चेहरा मुस्कुराते हुए दिखता है हमारे घर में , दोस्तों में , ऑफिस में लगभग हर जगह। ..तो ये तो एक बेहतर बात हुई  पर क्या सच में वो मुस्कुराहटें सच्ची थी ? या हम सब एक अच्छे  एक्टर है तो जवाब है के हम सब एक अच्छे एक्टर है। वो सामने होकर भी आँखे चुराएँगे आपसे और अगर आप पूछ बैठे -"ये आँखे लाल क्यों है "?.. अरे!..वो रात में बुक पढ़ रही थी ,मूवी देख रहा था , अरे..वो कमर दर्द था इसलिए नींद नहीं आई। कई सारे जवाब होंगे आप पकड़ नहीं पाएंगे और तब भी शक दूर नहीं हुआ तब आपके तकियों में वो गीलेपन का निशान ढूंढेंगे। लेकिन हम शातिर जो हो चले बिस्तर में भी चादर के अंदर रुमाल लेकर सोते है..सबूत नहीं छोड़ते। हममे से कुछ ऐसा करते है अपने आसुओ के साथ। 
इस एक जिंदगी में जीने के लिए हमारी इंटरनल मजबूती का हमारे साथ होना जरुरी है लेकिन आप ये ठान ले की आप कभी आंसू नहीं बहायेंगे  तो क्या ये हमारे अंदर बसी एक तरह की कमजोरी का ही हिस्सा है। हम चाहे या न चाहे आँसुओ से दूर रहना मुश्किल है फिर हमारे अन्दर की मजबूती कहाँ ठहरती है ? चलिए मिलकर टटोलते है अपने आसुंओ के फ़लसफ़े को जहां नुकसान -नफे के तराज़ू की तौल हमसे कुछ कहती है शायद। 
इनके बारे में जब भी पढ़ा -सुना वो दर्द और तकलीफ से भरा ही था तो क्या ये आंसू दर्द का ही प्रतिबिम्ब है ?…हममे से कई ऐसा मानते है आंसू हमेशा से कमजोर व्यक्तित्व का पर्याय रहा है तो क्या ये पूरा सच है  या कई बार साबित हो चुका इसका एक पक्ष यह भी है की जब हम अपनी व्यक्तित्व नुमा दीवारो को बरबस और बेतरतीब बहते आंसुओ से सींचते है तो उसके बाद की मजबूती बेजोड़ होती है वैसे आंसू हमारी भावनाओ से जुड़ा एक ऐसा सजीव और प्रत्यक्ष सच है जो वास्तविक दुःख और सच्चे सुख दोनों में साथ होते है तो क्या यही तक है उन आंसुओ की मंजिल जो बह जाते है यूंही कभी-कभी या वक़्त की नज़ाकत इन्हे थोड़ा और जानने के लिए एक अलग नज़रिये  की मांग करती है तो ये सच है और..यकीनन हमारे आंसू बहते है जब हमारा यकीन टूटता है , जब हमारा विश्वास टूटता है - हमारी उम्मीद टूटती है और हमारे आंसू जब बहते है जब हमारा प्यार टूटता है  लेकिन आंसू बहाना और आंसू बहाते रहने में फर्क है।
हमारी जिंदगी में कितनी तोड़ -फोड़ हुई इसका हम पर और हमारे अपने जिन्हे हमारी फ़िक्र  है उनके अलावा और दुनिया में किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
जिंदगी में ऐसे बहुत  से मौके आएंगे जब हम अपने आंसुओ को रोक नहीं पाएंगे और कई ऐसे मौके हम खुद बनाएंगे जिसके लिए बाद में हम सोचेंगे कि वो आंसू हमने बेवजह बहाये।
सबकुछ तो हमारे हाथ में नहीं लेकिन कुछ परिस्थितियों की जिम्मेदारी हमारी खुद की बनती है। हम आंसुओ
और मुस्कुराहट में से क्या चुनते है ये हमारा फैसला है। हम किसके लिए कितना इस्तेमाल हुए या हमें इस्तेमाल किया गया , हमारे साथ क्या बुरा हुआ कितना बुरा हुआ ये जिंदगी के वो पिछले पन्ने है जिन्हे हम यादो में ही पलटते है।  हमारा दर्द और हमारे आंसू हमारा भविष्य नहीं हो सकते। 
लेकिन इन आंसुओ के भंवर में हिचकोले खाती  हमारी नाँव मेरे कुछ पिछले सवालो से घिरी नजर आती है , जहाँ हम ठान ले कि  हम कभी आंसू नहीं बहायेंगे - तो क्या ये हमारे कमजोर व्यव्क्तित्व का ही हिस्सा ?..फिर कहाँ ठहरती हैं हमारी मजबूती ? और ये आंसू हमारे लिए क्यों जरुरी है ?
तो अब शायद हम अपने सवालो के आस-पास है - हमारा ये ठान लेना और आंसू  न बहाना हमारी कमजोरी नहीं हमारे खुद के आत्मसम्मान के प्रति हमारा सकारात्मक रवैया है और हमारे आंसू एवैं किसी के सामने क्यों आयेगे भला...वो क़ीमती है बहुत  बेशकीमती है ..उनके कीमती होने का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हो कि जब तक हमारे आंसू हमारे अंदर है तब तक हम बेहद मजबूत है और जब कभी वो बाहर आ भी जाये तो समझ लीजियेगा कि आपने अपनी जिंदगी के एक अलग पहलु को एक नए तज़ुर्बे , नई तालीम औए एक मजबूत समझ के साथ उसे उसके अगले पड़ाव तक पंहुचा दिया  है।





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Sunday, February 8, 2015

इश्क़ का Emotion- (ValentineDay Special)

                                     
हमारी ख़्वाहिशों  में, हमारे ख्वाबों में बसता है ‘प्यार’। रिश्तों में जिन्दा रहता है और कुछ के लिए जिन्दगी बन जाता है ये ‘‘प्यार’’। कुछ को अपनी जिद, अपने जुनून से प्यार हो जाता है और कुछ.. खुद को देश के  ‘प्यार’ पर न्यौछावर कर देते हैं। कुछ को अपने नाम से और कुछ को अपने काम से ‘प्यार’ होता है। हर मज़हब की हर किताब में ‘प्रेम’ को सबसे ऊपर जगह दी गई है।
तो 'इश्क़ का इमोशन’ हम सभी में बसे ‘इमोशन्स’ में सबसे अहम् और सबसे पहले है यानी जितनी भी बेहतर और अच्छी भावनाएं हैं जिसमें उम्मीद, भरोसा, विश्वास , पसन्द, अपनापन और लगाव जैसे कई खूबसूरत शब्द  है - और इन इमोशन्स का जन्म प्यार से ही होता है । तो अब तक जो बाते आपके समक्ष है वो यथार्थ के कितने करीब हैं ये आपके और मेरे नजरिए पर निर्भर करता है।
तो इन लिखे हुए शब्दों  में और आगे लिखे जाने वाले विचारो  में क्या ‘नया’ है जो मैं आपको बताने जा रहा हूँ सच कहूँ तो कुछ भी नया नहीं। बस एक कोशिश करनी है आपके साथ मिलकर कुछ नया जैसा करने की। आज के दौर का ‘प्यार’ जो एक से चेहरे में बदल रहा है उसे कई चेहरों में तब्दील करने की। बस एक कोशिश ‘प्यार’ के कई रूपों में इसके सही मायने तक पहुंचने की। मैं यहाँ ये नहीं कहना चाहता कि आज के दौर में सच्चे प्यार की कद्र नहीं। ऐसा इसलिए भी नहीं कहूंगा क्योंकि ये कुछ लोगों के साथ नाइंसाफी होगी।फिर भी कुछ ऐसे भी है जिन्होंने प्यार को  अपने मतलब  और मकसद के लिए कई बार  नापाक किया हैं। 
वैसे प्यार जैसे नायाब एहसास से मैं अब तक क्या महसूस कर पाया तो इस नाचीज़ का एक नजरिया पेशे -खिदमत है। ‘कुबूल फरमाए’-
‘प्यार’ एक खूबसूरत एहसास और स्पर्श  की एक अबूझ  कहानी सी है। ये प्रेम हर तरह से अलग-अलग  रिश्तों  में पेटेन्ट है लेकिन इसका पवित्र एहसास अविस्मरणीय है। इन सब बातो के अलावा एक सच ये भी है कि आज भी हमारे देश के कई शहर ऐसे भी है जहाँ परिवारो में रिश्तो की गरिमा इतनी वजनी बना दी जाती है जिनकी सीमायें तय हो जाती है और इस कठोरता के बीच परिवार में प्यार कही खो जाता है।  प्यार समझने की और ज़ाहिर करने की एक डोर है जो रिश्तो को मजबूत करती है।  तो असहज होते रिश्तो में 'आई लव यू ' - ये तीन शब्द किसी अमृत से कम नहीं। आप  सामने वाले शख़्स से ये इज़हार किस भाषा में कर रहे है या आपका वो प्यार भरा तरीका क्या है मुद्दा ये नहीं बस आपकी ये भावना उन तक पहुँचनी चाहिए।
वेलेनटाइन डे केवल एक दिन नहीं केवल एक सप्ताह नही। हम भारतीयों के लिए एक मौका है, अपने सच्चे-अच्छे प्यार का इज़हार करने के लिए। सुना है इसके इज़हार करने में बहुत हिम्मत चाहिए। क्या ये इतना मुश्किल हैं ?.... चलिए करके देखते है -
‘आई लव यू’ कहिए अपनी माँ से जिसने हमारे जन्म के बाद हमें गोद में लेकर हमें ममता का पहला स्पर्श  दिया जो वास्तविक रूप में हमारा पहला प्यार बना जो हमारे पूरे जीवन व अंत समय तक हमारे सर पर आशीर्वाद  की ढाल बनकर रहता है।
‘आई लव यू’ कहिए अपने पिता से जिन्होने हमारे जन्म के बाद हमारे संरक्षक होने का बीड़ा उठाया और दर्द होने पर भी हम तक दर्द पहुंचने नहीं दिया ये भी हमारी जिन्दगी में पहले प्यार का ही हिस्सा है। जो कभी इज़हार  तक नहीं पहुंच पाता।
‘आई लव यू’ बोलिए अपने भाई को, अपनी बहन को जो कहीं न कहीं आपकी जिन्दगी में बड़े बदलाव और त्याग का हिस्सा बनते हैं। ‘आई लव यू’ बोलिए अपने उन अजीज़ों को अपने उन दोस्तों को जिनके होने से कहीं न कहीं आपका होना वाजिब होता है। क्योंकि इस जीवन में यही कुछ ऐसे किरदार हैं, जो हमें मिलते हैं।

जिनकी वजह से हमारी जिन्दगी हमारी हो पाती है। जिनकी वजह से हम खुद पर गर्व और खुद से प्यार कर पाते हैं। प्यार का मतलब समझ पाते हैं। मुद्दा ये नहीं की हम ‘प्यार’ किससे करते हैं- वो आपकी गर्लफ्रेंड-ब्वाॅयफ्रैन्ड हैं , हैसबैन्ड या वाइफ हैं , वो आपकी माँ है या पिता, भाई हैं या बहन, या फिर कोई अजीज दोस्त। अहम मुद्दा ये है कि क्या हम उस प्यार की पवित्रता को उसके सही एहसास के साथ सामने वाले तक पहुंचा पा रहे हैं या नहीं। प्यार एक ऐसा डोज है इसकी जहाँ जितनी जरूरत उसे उतना वहाँ दे सकते हैं। बस दो जगह ये बेहिसाब है पहले वो ‘ईश्वर’ दूसरे हम खुद क्योंकि अधिकतर ख़ुश रहने वाले और जो सफल लोग हैं वो कहते हैं कि खुद को खुद की नज़रों में इज़्ज़त देना और खुद से प्यार करना बेहतरीन अनुभव  है। वैसे भी ये जिन्दगी कितनी लम्बी है या कितनी छोटी हममे से किसी को नहीं पता तो जब तक इस दुनिया में  रहे आपस में प्यार से रहा जाए तो हर दिन वेलेन्टाइन डे।  …हैं न. !
                                             





                                                                                                                              Pictures By; Google

Friday, January 9, 2015

दौड़ती ज़िन्दगी - बढ़ती इमारतें


 सुनहरी सुबह-सुबह का वक्त चिड़ियों का चहचहाना ,गिलहरियों-तितलियों के छोटे-छोटे झुण्ड,सामने अपना चमचमाता हुआ दो मंजिला मकान और अपने खूबसूरत से छोटे लाॅन में चाय की चुस्कियों के साथ हाथ में ताजा-तरीन खबरों वाला अख़बार,सामने मिसेज पौधो में पानी देती हुई और बच्चें तितलियों और गिलहरियों के आगे-पीछे दौड़ते हुए..के अचानक मकान की दीवारें हिलने लगी और देखते ही देखते पूरा मकान ढह गया और इतने में ही पसीने से सराबोर मनोहर साहब की आँख खुल गयी। अपने हसबैण्ड को उठाते हुए मिसेज ने आज फिर अपने माथे पर अपनी हथेली दे मारी-‘‘आज फिर वही सपना देखा न?’’
 मनोहर साहब पसीना पोंछते हुए-‘‘क्या करूं?..दिमाग में जो घुडदौड़ चल रही है वो बेसुध होने पर तो मंजिल तक पहुंच ही जाती है। ऊपर वाले की दया से हम अच्छा ही खा-पी रहे हैं और बच्चों की पढ़ाई किसी तरह मैनेज हो जाती है। लेकिन अपने खुद के मकान या फिर ज़मीन के एक टुकड़े के लिए इस हद तक परेशान होना पड़ रहा है कि......खैर अब आॅफिस का टाइम हो रहा है।’’
वाकई ये वाक्या चैंकाने वाला तो था नहीं लेकिन एक आम आदमी से जुड़ा सबसे बड़ा सच तो जरूर है। जहां एक तरफ शहरों में अस्त-व्यस्त और पस्त भागती दौड़ती ज़िन्दगी नज़र आती है। वहीं एक तरफ बढ़ती पनपती इमारतें जो ज़मीनी हकीकत को मुंह चिढ़ाते हुए बढ़ती जा रही हैं। कद में भी और आम आदमी की जेब में दम तोड़ते दामों में भी। ये एक ज़िन्दगी और इस एक ही ज़िन्दगी में कई ज़िम्मेदारियां, एक चूक और मानो जिन्दगी नुमा शर्ट के पहले बटन का गलत खांचा चुन लिया हो।
यहां मेरा मकसद किसी अनदेखे से डर के एहसास से नहीं बल्कि उस हकीकत के स्पर्श से है जो हम और आप महसूस कर सकते हैं। हमारे आस-पास की चकाचैंध हमारी आंखों को तो सुकून दे सकती है लेकिन दिल और दिमाग में एक खुरचन सी दे जाती है और दिल से एक आवाज आती है कि काश इन जैसा एक आशियाना हमारा भी होता। वो बात अलग है कि इस जहां में कुछ ठान लेने वालों के लिए कहीं कोई कोना तो सुनिश्चित होता ही है। लेकिन अपने उस सपनों के छोटे से घर तक पहुचंना किसी सांप-सीढ़ी के खेेल से कम नहीं।
जहां सीढ़ी की चढ़ाईनुमा नौकरी में बेतरतीब मेहनत है वहीं सांप के दंश सी बढ़ती महंगाई और उसके सपनों का घर सड़कों पर लगे बड़े-बड़े होर्डिग्ंस में और अखबारों के फ्रन्ट पेज पर आसान किस्तो पर नज़र आता है वहीं दूसरे दिन की खबरो में स्टाम्प ड्यूटी, सर्किल रेट और मंहगी हुई रजिस्ट्री उसके सपनों के झूमर पर पत्थर मारते हैं।
फिर किसी एक आम आदमी के एक हाथ में महीने भर की तनख्वाह और दूसरे में उन अखबारों की खबरों को देखता है फिर नम आखों से मुस्कुराता हुआ खुद को कहता - लो बेटा बाबा जी का ठुल्लू।
हर हालात में मुस्कुराना ये हमारी आज की बडी उपलब्धियों में से एक है। लेकिन जिन्दगी के इस सर्कस में हर आदमी तो जोकर नहीं बन सकता फिर भी ये गर्व करने वाली बात है कि जोकर जैसी शख्सियत को खुद में रखना यानी समस्या को हल की तरफ ले जाना है।
अभी हाल ही के दिनों की बात है जब मैं अपने अंकल लोगों के साथ लाॅग ड्राईव पर निकला था। अहमद चाचा ड्राइव कर रहे थे और राजू चाचा मेरे साथ पीछे की सीट पर थे। दोनो दोस्तों में हंसी मजाक का दौर बदस्तूर जारी था। तभी हमारी बायीं ओर से एक शमशान गुजर रहा था। सभी ने कुछ लकड़ी के ढेरों की ओर जलती हुई आग को सर झुकाकर नमन किया। कुछ दूर आगे निकल जाने पर राजू चाचा ने कहा- अमा मियां अहमद कुछ सालों बाद हम भी इसी तरह लकड़ियों के ढेर पर रूकसत हो जायेगें। लेकिन मियां ये बताओ आपके यहां तो दफनाने का रिवाज है जिस तरह ज़मीन की किल्लत इस वक्त है तो आने वाले वक्त में तो.... इतना कह कर वो रूक गए। मुद्दा तो बहुत पेचिदा था। लेकिन राजू चाचा की इस बात पर अहमद चाचा ने चुटकी लेते हुए कहा-''तब तक हो सकता है हमारी सरकार अपने लोगो के लिए बेसमेन्टनुमा फ्लैट कल्चर लागू कर दे।''
 राजू चाचा-(मतलब)।  ''अमां मतलब ये जिस तरह अभी जमीने कम पड़ रही हैं मकानों के लिए.. तो शहरो में बडी-बडी बिल्डिंगे खडी हो गई है..हो सकता है हमे भी गहरी जमीनो में फ्लोर दे दिए जाए। उनकी इस बेतुकी लेकिन माहौल को हल्का करने वाली बात पर सभी हंस पडे।
मैं भी मुस्कुराता हुआ एक सोच में डूब गया और कार की खिड़की से बाहर की तरफ देखते हुए मैने देखा कि एक छोटी चिड़िया अपनी चोंच में सूखे घास का गुच्छा लिए पेड़ पर बने अपने घोसले की तरफ जा रही थी। मेरा वो सफर एक मुस्कुराहट के साथ उस दिन खत्म हुआ लेकिन एक नया सफर इन आखिरी कुछ शब्दों के साथ शुरू हुआ......-  
                                                                                                                                                                                                                                           








                                                             एक आशियां मेरा भी होगा खूबसूरत इस जहां में।

                                                                   बस इन पंछियों के घोंसले  मेरी उम्मीद कायम रखते है।।

                                                                                                                                                                                                                                                                                 एक प्रयास - रितेश निश्छल




                                                                                                                                  Pictures By; Google