Thursday, October 8, 2015




कैसा होता है बदलो के ऊपर का समां    
आओ, ........    देखे ऊपर से आसमां
खुद को इतनी ऊंचाई पर पाकर ,
सोचो न कैसा लगता होगा इतने ऊपर आकर। 
हल्की ठंडी सी हवाएँ छू लेती हैं तन को मन को,
ताजुब होगा गर मैं कहूँ,.....
हमने इस अहसास को जमीं पर रहकर जिया हैं,
जिंदगी में एक बार ऐसा तो कुछ किया हैं। 
ये किसी सपने में उड़ान की बात नहीं,..
एक अलग पहचान छिपी है हममे ही कही,... 
जिंदगी में जब भी हमने किसी सपने को सच में जिया है, 
तो उस लम्हे में खुद को आसमां से भी ऊपर किया है। 
चलो न ऐसी कई उड़ाने भरते है. 
बदलो को अपने कदमो के नीचे करते हैं। . .  
उन ठंडी मर्म हवाओ के अहसास में जीते है 
अपने जीत के पंखो को मजबूती से सीते हैं 

चलो न और सपनो के अम्बार लगाते  हैं। 
और हर जीत के बाद, … 
इन बदलो के,इस आसमां के और-और पार जाते हैं  

चलो न ऐसी कई उड़ाने भरते है. 
बदलो को अपने कदमो के नीचे करते हैं। . . 




                                                                                                                                     चित्र - गूगल से। 

Wednesday, October 7, 2015

खुद से कहना मजबूत रहना। .





   These Lines are Inspired By The Efforts of my M.D Sir (Hats Off Sir)



खुद से कहना मजबूत रहना। .

हर रास्ता थोड़ा सताएगा , पसीने से जब ये चेहरा नहायेगा।
सूखी धरती पर जब बूंदे बटोरेंगे , सोचो ये तजुर्बा क्या कहलायेगा। 
ख़्वाहिशों का समंदर भी होगा , जो चाहेंगे वो पूरा भी होगा। 
आओ सब्र की खूंटी से बंध जाये , गर्दिशों में जीत के गीत गुनगुनाये। 

अपने हर दर्द को भूल जाने का इल्म दे ,
आओ अपनी जिंदगी को हंसी-ख़ुशी वाली फिल्म दें।